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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


दस मिनट तक प्रतीक्षा करके अपूर्व झुंझलाकर उत्कंठित हो उठा। उसने पूछा, “क्या यह पत्र बहुत ही आवश्यक है?”

डॉक्टर ने कहा, “हां।”

अपूर्व बोला, “उधर की कुछ व्यवस्था हो जाना भी तो कम आवश्यक नहीं है। क्या आप उनके घर किसी को न भेजिएगा?”

डॉक्टर ने कहा, “इतनी रात को वहां जाने के लिए कोई आदमी नहीं मिलेगा।”

अपूर्व बोला, “तब उसके लिए आप चिंता न करें। सवेरे मैं खुद ही चला जाऊंगा। आप भारती को मना न करते तो हम अभी चले जाते।”

डॉक्टर लिखते-लिखते बोले, “इसकी आवश्यकता नहीं थी।”

अपूर्व ने कहा, “आवश्यकता की धारणा इस विषय में मेरी और आपकी एक नहीं है। वह मेरा मित्र है।”

चाय का सामान लेकर भारती नीचे उतर आई और चाय बनाकर पास बैठ गई। डॉक्टर का पत्र लिखना और चाय पीना, दोनों काम साथ-साथ चलने लगे।

दो-तीन मिनट बाद भारती रूठने के अंदाज में बोली, “आप हमेशा व्यस्त रहते हैं। दो-चार मिनट आपके पास बैठकर बातचीत कर सकूं, इसके लिए आप मुझे समय ही नहीं देते।”

डॉक्टर ने चाय के प्याले से मुंह हटाकर हंसते हुआ कहा, “क्या करूं बहिन, इस दो बजे की ट्रेन से मुझे जाना है।”

भारती चौंक पड़ी। और अपूर्व के मन में अपने मित्र के प्रति संशय और भी बढ़ गया। भारती ने पूछा, “एक रात के लिए भी आपको विश्राम नहीं मिलेगा?”

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