ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
डॉक्टर बोला, “मुझे केवल एक दिन छुट्टी मिलेगी भारती, लेकिन वह दिन आज नहीं है।”
भारती समझ न सकी। इसलिए उसने पूछा, “वह समय कब आएगा?”
डॉक्टर ने इसका उत्तर नहीं दिया।
अपूर्व बोला, “समिति का सदस्य न होते हुए भी रामदास सजा भुगतने जा रहा है। उचित नहीं है यह।”
डॉक्टर ने कहा, “सजा नहीं भी हो सकती है।”
अपूर्व ने कहा, “न हो तो उसका भाग्य है। लेकिन अगर हो गई तो वह अपराध मेरा होगा। इस संकट में मैं ही उसे लाया था।”
डॉक्टर केवल मुस्करा दिए।
अपूर्व बोला, “देश के लिए जिसने दो वर्ष की सजा भोगी है, असंख्य बेंतों के दाग जिसकी पीठ से आज भी नहीं मिटे। इस अवदेश में जिसके बच्चे केवल उसी का मुंह देखकर जी रहे हैं, उसका इतना बड़ा साहस असाधारण है। इसकी तुलना नहीं।”
डॉक्टर ने कहा, “इसमें संदेह क्या है अपूर्व बाबू! पराधीनता की आग जिसके हृदय में रात-दिन जल रही है, उसके लिए इसके अतिरिक्त और तो कोई उपाय है नहीं। साहब की फर्म की इतनी बड़ी नौकरी या इनसिन का कोई भी व्यक्ति उसे रोक नहीं सकता। यह उसका एकमात्र पथ है।”
डॉक्टर की बातों को व्यंग्य समझकर वह जैसे एकदम पागल हो उठा। बोला, “आप उसके महत्व को भले ही अनुभव न कर सकें, लेकिन साहब की फर्म की नौकरी तलवलकर जैसे मनुष्य को छोटा नहीं बना सकती। जितनी भी इच्छा हो आप मुझ पर व्यंग्य कीजिए लेकिन रामदास किसी भी बात में आप से छोटा नहीं है। यह बात आप निश्चित रूप से जान जाएंगे।”
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