ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
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अपूर्व के इस तरह बाहर चले जाने पर सभी आश्चर्य में पड़ गए। बैरिस्टर कृष्ण अय्यर ने पूछा, “यह कौन है डॉक्टर? बहुत ही भावुक।”
उसकी बात में स्पष्ट उलाहना था कि ऐसे लोगों का यहां क्या काम है?
डॉक्टर थोड़ा हंस पड़े।
प्रश्न का उत्तर दिया तलवलकर ने, “यह हैं मिस्टर अपूर्व हालदार! हमारे ऑफिस में मेरे सुपीरियर अफसर हैं। लेकिन बहुत अन्तरंग हैं। मेरे रंगून के प्रथम परिचय की कहानी नहीं सुनी। यह एक....”
सहसा भारती पर नजर पड़ते ही रुककर उसने कहा, “वह जो कुछ भी हो, प्रथम परिचय के दिन से ही हम लोग मित्र हैं।”
डॉक्टर हंसकर बोले, “भावुकता नाम की वस्तु सर्वदा बुरी नहीं होती कृष्ण अय्यर! और तुम्हारी तरह सभी को कठोर पत्थर बन जाने से काम नहीं चलेगा। ऐसा सोचना भी ठीक नहीं है।”
कृष्ण अय्यर बोले, “ऐसा मैं भी नहीं सोचता। लेकिन कमरे को छोड़कर उनके विचरने के लिए संसार में स्थान तो कम है नहीं।”
तलवलकर मन-ही-मन क्रोधित हो उठा। जिसे बार-बार अपना परम मित्र बता रहा है, उसे उसी के सामने अवांछित व्यक्ति सिद्ध करने की चेष्टा से उसने अपना अपमान समझकर कहा, “मिस्टर अय्यर, अपूर्व बाबू को मैं पहचानता हूं। यह सच है कि हम लोगों के मंत्र की दीक्षा लिए उन्हें बहुत दिन नहीं हुए। लेकिन मित्र की अकल्पित मृत्यु से थोड़ा-सा विचलित हो जाना, हम लोगों के लिए भी कोई भयानक अपराध नहीं है। संसार में चलने-फिरने के लिए अपूर्व बाबू को स्थान की कमी नहीं है। और मुझे आशा है कि इस मकान में भी उनके लिए स्थान की कमी नहीं पड़ेगी।”
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