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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


“आपको प्रणाम करने के लिए। मेरे पूना सेन्ट्रल जेल में जाने के बाद ही आप चले गए थे। तब अवसर नहीं मिला। नीलकांत जोशी का क्या हुआ, जानते हैं? वह तो आपके साथ ही था।”

डॉक्टर ने कहा, “बैरक की चारदीवारी लांघ नहीं पाए, पकड़े गए और फांसी हो गई।”

अपूर्व ने पूछा, “उस दशा में क्या आपको भी फांसी हो जाती?”

डॉक्टर हंस पड़े।

उस हंसी को सुनकर अपूर्व सिहर उठा।

रामदास ने पूछा, “इसके बाद?”

डॉक्टर बोले, “एक बार सिंगापुर में ही मुझे तीन वर्ष तक नजरबंद रहना पड़ा था। अधिकारी मुझे पहचानते थे। इसीलिए सीधा रास्ता छोड़कर बैंकाक के रास्ते पहाड़ लांघकर मेवाद पहुंच गया। भाग्य अच्छा था। एक हाथी का बच्चा भाग्य से मुझे मिल गया। हाथी के उस बच्चे को बेचकर एक जहाज में नारियल के चालान के साथ अपना चालान कराकर मैं अराकान पहुंच गया। अचानक थाने में एक परम मित्र के साथ आमना-सामना हो गया। उनका नाम है बी. ए. चेलिया। मुझे बहुत प्यार करते हैं। बहुत दिनों से दर्शन न होने पर मुझे खोजते हुए सिंगापुर से बर्मा आ गए। भीड़ में अच्छी तरह नजर नहीं रख सके। नहीं तो पैतृक गले का....।” यह कहकर हंस पड़े। लेकिन सहसा अपूर्व के चेहरे पर नजर पड़ते ही चौंककर बोला, “यह क्या अपूर्व बाबू? आपको क्या हो गया? ”

अपूर्व स्वयं को संभालने का प्रयत्न कर रहा था। उनकी बात पूरी होते, न होते दोनों हाथों से मुंह ढककर तेजी से दौड़ता हुआ कमरे से निकल गया।

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