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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


उसके सिर पर हाथ रखकर डॉक्टर बोले, “ऐसा नहीं होगा। सब ठीक होगा।”यह कहकर वह हंस पड़े। बोले, “लेकिन इस व्यक्ति के साथ इस प्रकार झूठ-मूठ झगड़ा करने पर सचमुच ही रोना पड़ेगा। अपूर्व बाबू क्रोध अवश्य करते हैं लेकिन जो प्यार करते हैं उसे प्यार करना भी जानते हैं।”

भारती कुछ उत्तर देने जा रही थी लेकिन अचानक अपूर्व के मुंह उठाते ही उसके मुंह की ओर देखकर चुप हो गई।

उसी समय दरवाजे के पास एक घोड़ा गाड़ी रुकी और जल्दी ही दो आदमियों ने प्रवेश किया। एक ऊपर से नीचे तक अंग्रेजी पोशाक में था जिसे डॉक्टर के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता था। दूसरा था रामदास तलवलकर।

अपूर्व का चेहरा चमक उठा। रामदास ने आगे बढ़कर डॉक्टर के चरणों की धूल माथे पर चढ़ाई।

अंग्रेजी ड्रेसवाला व्यक्ति बोला, “जमानत में इतनी देर हो गई शायद गवर्नमेंट मुकदमा नहीं चलाएगी।”

डॉक्टर बोले, “इसका अर्थ यह है कि तुम गवर्नमेंट को नहीं पहचानते।”

रामदास ने कहा, “मैदान से आने तक आपको साथ-साथ देखा था। लेकिन फिर कब अर्न्तध्यान हो गए, पता नहीं चला।”

डॉक्टर ने हंसकर कहा, “अर्न्तध्यान होना जरूरी हो गया था रामदास बाबू! यहां तक कि रातों-रात यहां से भी अर्न्तध्यान होना पड़ेगा।”

रामदास बोला, “उस दिन स्टेशन पर मैंने आपको पहचान लिया था।”

“जानता हूं। लेकिन सीधे घर न जाकर इतनी रात गए यहां क्यों?”

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