लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

286 पाठक हैं

हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


डॉक्टर बोले, यह अत्यंत स्वाभाविक है भारती। सुंदर वन में शस्त्र-त्याग कर खड़े होकर शांति की वाणी का प्रचार करने से बाघ-भालुओं के प्रसन्न होने जैसी बात है। वह लोग साधु मनुष्य हैं।

भारती बोली, आज भारत का चाहे जितना दुर्भाग्य क्यों न हो, सुदूर अतीत में यह अवस्था नहीं थी। एक दिन भारत सभ्यता के उच्च शिखर पर आसीन था। उस दिन हिंसा-द्वेष नहीं, धर्म और शांति का मंत्र भारतवर्ष से ही चारों ओर प्रचारित हुआ था। मुझे विश्वास है कि वही दिन फिर हम लोगों के सामने लौट आएगा।

भारती की बातें सुनकर शशि का हृदय श्रद्धा और अनुराग से विचलित हो रहा था। गद्गद स्वर में बोला, भारती के कथन का मैं अनुमोदन करता हूं डॉक्टर। मेरा यही विश्वास है कि भारत की वही सभ्यता फिर लौट आएगी, अवश्य आएगी।

डॉक्टर ने दोनों की ओर देखते हुए कहा, तुम लोग भारत के किस युग की सभ्यता की चर्चा कर रहे हो - मैं नहीं जानता। लेकिन सभ्यता की भी एक सीमा होती है। धर्म-अहिंसा और शांति के उन्माद में उसे पार कर जाने पर मृत्यु निश्चित है। कोई देवता भी उसकी रक्षा नहीं कर सकता। भारत ने हूणों के सामने अपनी पराजय कब स्वीकार की थी, जानते हो? जब उन लोगों ने उनके बच्चों को मशाल की तरह जलाना शुरू कर दिया था। नारियों की पीठ के चमड़े से युद्ध के वाद्य बनाने आरम्भ कर दिए थे। उस कल्पनातीत नृशंसता का उत्तर देना भारतीयों ने नहीं सीखा था। उसका फल क्या हुआ? देश गया, राज्य गया, देव-स्थान ध्वस्त हो गए। हम लोगों की उस असमर्थता का दंड आज तक भी पूरा नहीं हुआ है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book