ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
फिर भारती की ओर देखकर बोले, तुम अक्सर कवि की कविता सुना करती हो - देश गया तो क्या दु:ख है, तुम लोग फिर मनुष्य बनो। लेकिन देश को वापस ला पाने योग्य मनुष्य बन जाना किसे कहते हैं? - तुमने सोचा है? मनुष्य बनने का तुम्हारा मार्ग बिल्कुल निष्कंटक है? - सोचा है, देश के दरिद्र नारायण की सेवा करने और मलेरिया में कुनैन बांटते फिरने को ही मनुष्य बन जाना कहते हैं? ऐसी बात नहीं है। मनुष्य होकर जन्म लेने की मर्यादा-मोह को ही मनुष्य बनाना कहते हैं? मृत्यु के भय से मुक्ति पा लेने को ही मनुष्य होना कहते हैं?
पल भर बाद फिर बोले, तुम्हारा अपराध नहीं है भारती। उन लोगों के वातावरण के बीच ही तुम पली-बढ़ी हो। इसीलिए तुम्हारे मन में यह विचार जम गया है कि यूरोप की ईसाई सभ्यता से बड़ी और कोई सभ्यता नहीं है। लेकिन इतनी बड़ी झूठी बात भी और कोई नहीं है। सभ्यता का अर्थ क्या केवल मानव-संहार के यंत्रों का आविष्कार ही है? दुरात्माओं के पास छलों का अभाव नहीं होता। इसलिए आत्म-रक्षा के छल से इनकी नित नई सृष्टि का भी कोई अंत नहीं है। लेकिन सभ्यता का अगर कुछ अर्थ हो तो यही है कि असमर्थों और दुर्बलों के न्यायोचित अधिकार शक्तिशाली की शारीरिक शक्ति से परास्त न हों। कहीं भी देखी है इनकी ऐसी नीति? क्या इन्हें कहीं भी इस न्याय को गौरव देते हुए देखा है। एक दिन मैंने तुमसे कहा था-पृथ्वी के मानचित्र की ओर ध्यान से देखो याद है यह बात? याद है मेरे मुंह से सुनी हुई चीन देश के केंटन विद्रोह की कहानी? सुसभ्य यूरोपियन महाशक्तियों के बल ने उनके घरों पर धावा करके उनसे जो बदला लिया उसके सामने चंगेज खान और नादिर शाह की वीभत्सता की कहानियां कहां टिकती हैं। सूर्य के सामने दीपक की तरह - वह तो इसके सामने तुच्छ ही है। कारण कितना ही तुच्छ और अन्यायपूर्ण क्यों न हो - युद्ध का बहाना मिलने पर फिर इन लोगों को कोई हिचक नहीं होती। बूढ़ा, बच्चा, नारी-किसी भी हत्या में कोई संवेदना नहीं है, दुविधा नहीं है। उस पाप की कोई सीमा नहीं है भारती, उस विषैली गैस से नर-हत्या करने में भी उनकी नैतिक बुद्धि बाधा नहीं देती। उद्देश्य सिद्धि के लिए यह लोग किसी भी उपाय को और किसी भी मार्ग को सुपवित्र मानते हैं। नीति की बाधाएं और धर्म के निषेध क्या केवल निर्वासितों और पद दलितों की लिए ही हैं?
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