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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


भारती कोई उत्तर न देकर चुप बैठी रही। इन सब अभियोगों का प्रतिवाद करना वह क्या जाने? जो निर्भय है, अत्यंत दृढ़ चित है, शंकाहीन, क्षमाहीन विप्लवी है - जिसके ज्ञान, बुद्धि और पांडित्य का अंत नहीं है - पराधीनता की अनबुझ आग से जिसका समस्त तन और मन रात-दिन दीपशिखा के समान जल रहा है-उसे युक्तिओं से परास्त करने का साधन कहां खोजने पर मिलेगा? उसके पास कोई उत्तर नहीं। उसकी भाषा मूक हो रही। लेकिन उसका अकलुष नारी हृदय अंधी करुणा से सिर धुन कर चुपचाप रोने लगा।

बहुत दिनों से सुमित्रा ने इस प्रकार के वाद-विवाद में भाग लेना बंद कर दिया था। आज भी वह मुंह झुकाए चुप बैठी रही। केवल कृष्ण अय्यर असहिष्णु हो उठा। आलोचना के अनेक अंश उसकी समझ में नहीं आ रहे थे। इस नीरवता के बीच उसने पूछा, हमारी सभा का कार्य आरम्भ होने में कितनी देर है?

डॉक्टर बोले, कुछ देर नहीं। सुमित्रा, क्या तुम्हारा जावा जाना निश्चित है?

हां।

कब?

शायद इसी बुधवार को।

पथ के दावेदारों का साथ तुमने छोड़ दिया?

हां।

डॉक्टर जरा हंस पड़े। इसके बाद जेब से टेलीग्राम के कई काग़ज़ निकालकर सुमित्रा के हाथ में देकर बोले, इन्हें पढ़कर देखना, हीरा सिंह कल रात दे गया था।

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