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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


अपूर्व बोला, मां का श्राद्ध मैं यहीं करूंगा डॉक्टर।

यहां? इसका कारण?

अपूर्व मौन रहा, भारती ने भी उत्तर नहीं दिया।

डॉक्टर मन-ही-मन समझ गए कि कोई घटना ऐसी हो गई है जो खोलकर कही नहीं जा सकती। बोले, तो इस हालत में वहां लौट जाने की क्या जरूरत है? नौकरी आपकी है न?

अपूर्व चुप रहा।

शशि बोला, अपूर्व बाबू संन्यास लेंगे।

डॉक्टर जरा हंसकर बोले, संन्यास! यह कैसी बात है?

उनकी हंसी से अपूर्व क्षुब्ध हो गया, बोला, संसार में जिसकी रुचि नहीं है, जिसका जीवन स्वादहीन हो गया है।....इसके अतिरिक्त उसके लिए और कौन रास्ता है डॉक्टर?

डॉक्टर ने कहा, यह सब बड़े आध्यात्मिक विषय हैं अपूर्व बाबू! इनमें अनधिकार चर्चा करने के लिए मुझे अब प्रलोभन मत दीजिए। इससे तो अच्छा है कि शशि की राय लीजिए। यह सब कुछ जानता है। स्कूल में फेल होकर यह एक वर्ष तक एक साधु बाबा का चेला रह चुका है।

शशि इसमें संशोधन करके बोला, लगभग दो-वर्ष।

सुमित्रा और भारती हंसने लगीं। अपूर्व की गम्भीरता इससे विचलित नहीं हुई। उसने कहा, मां की मृत्यु के लिए मैं स्वयं को दोषी समझ रहा हूं। डॉक्टर गृहस्थाश्रम में रहने की मुझे आवश्यकता नहीं है। यह मेरे लिए कड़वा फल हो गया है।

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