ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
उनके हंसते हुए चेहरे को देखकर किसी का विश्वास नहीं हुआ। बाहर आंधी-पानी का ठिकाना नहीं था। भारती ने पलभर के लिए खिड़की खोलकर निरीक्षण करने के बाद लौटकर कहा, बाप-रे-बाप! आज तो शायद पृथ्वी पलट जाएगी। विदा लेने का समय अच्छा है भैया.....तभी उसे दूसरी बात याद आ गई बोली, लेकिन आज तुम्हें उसी छोटे कमरे में सोना पड़ेगा। अपने हाथ से बहुत ही सुंदर ढंग से बिछौना बिछा दूंगी।....क्या कहते हो? यह कहकर वह अंतर के प्रगाढ़ आनंद से झूमती रसोई के काम में लग गई।
भोजन तैयार होने पर डॉक्टर ने कहा, भारती, आज हम लोग सभी एक साथ भोजन करेंगे।
भारती बोली, ऐसा ही होगा भैया, हम सब एक साथ ही खाएंगे।
डॉक्टर ने कहा, लेकिन भूखे अपूर्व बाबू नजर लगाकर कहीं हमारे हाजमें में गड़बड़ी पैदा न कर दें। यह भी उससे कह दो।
अपूर्व हंस पड़ा, भारती हंसने लगी। बोला, इसका भय हम लोगों को तो हो सकता है लेकिन तुम्हारे हाजमें में गड़बड़ी कौन कर सकता है भैया? उस आग में पहाड़ भी पीसकर डाल दिए जाएं तो भस्म हो जाएंगे। जैसा खाना खाते मैंने देखा है, यह कहकर उस दिन का उनका भोजन याद करके मन-ही-मन सिहर उठी।
खाना आरम्भ हो गया। अन्न-व्यंजन की प्रशंसा और हंसी-मजाक से कमरे का वातावण पलभर में बदल गया।
जब खाना-पीना बहुत अच्छे वातावरण में चल रहा था, सहसा अपूर्व ने रस भंग कर डाला - उसने कहा, दो दिन पहले समाचार-पत्र में एक शुभ समाचार पढ़ा था डॉक्टर। अगर वह सत्य हो तो आपका विप्वल का प्रयास व्यर्थ हो जाएगा। भारत सरकार ने अपने शासन तंत्र में अमूल्य सुधार करने का वचन दिया है।
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