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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


शशि ने तुरंत उत्तर दिया, झूठी बात है, धोखा है।

भारती को इस बात पर सही ढंग से विश्वास हो गया हो, ऐसी बात नहीं थी। लेकिन उसने उद्वेग के साथ कहा, नहीं, इसमें छल नहीं हो सकता। शशि बाबू, जो लोग लगभग आधी शताब्दी से....नहीं भैया, तुम हंस न सकोगे, यह मैं कहे देती हूं, उनके अथक आंदोलन का क्या कोई फल नहीं होगा - यही सोचते हो? विदेशी शासक होने पर भी तो वह लोग आदमी ही हैं। धर्म, ज्ञान और नैतिक बुद्धि उनमें लौट आना असम्भव तो नहीं।

शशि ने कहा, सम्भव है झूठी बात नहीं है।

अपूर्व बोला, बहुत से लोगों का यही संदेह है।

भारती बोली, उनका संदेह झूठा है। भगवान क्या नहीं है? और शासन-पद्धति का परिवर्तन तथा अत्याचार का सुधार - यह सब अगर सचमुच हो जाए तो क्रांति का आयोजन और विद्रोह की सृष्टि - यह सभी एक दिन अर्थहीन हो जाएंगे भैया।

शशि ने कहा, अवश्य।

अपूर्व बोला, निस्संदेह।

भारती ने डॉक्टर के चेहरे की ओर देखकर कहा, भैया तब तुम अपनी वह भयंकर मूर्ति छोड़कर फिर शांत मूर्ति धारण कर लोगे न? - बताओ!

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