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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


डॉक्टर घड़ी की ओर देखकर मन-ही-मन हिसाब लगाकर जैसे अपने-आपसे बोले, अब अधिक देर नहीं है। इसके बाद भारती को सम्बोधित करके अत्यंत स्निग्ध स्वर में बोले, भारती, मेरी यह भयंकर मूर्ति है, यह तो मैं स्वयं ही नहीं जानता। सिर्फ यही जानता हूं कि इस जीवन में मेरे इस रूप में अब परिवर्तन नहीं होगा। और तुम्हारे आदरणीय नेताओं को भय नहीं है बहिन, आज उनको लेकर मजाक करके मन बहलाने का मेरे पास समय नहीं है। और न मन की अवस्था ही इसके अनुकूल है। विदेशी शासन का सुधार क्या है, जी-जान से किए गए आंदोलनों का वह क्या फल देना चाहते हैं - उसमें कितना असली और कितना नकली है - कितना मिल जाने के बाद शशि की समझ के अनुसार धोखेबाजी नहीं होगी और सम्माननीय नेताओं का रोना बंद हो जाएगा? - यह सब कुछ भी मैं नहीं जानता। विदेशी सरकार के विरुद्ध आंखें लाल करके जब वे उच्च स्वर में प्रचार करके कहते हंव - हम लोग अब सोए हुए नहीं हैं जाग गए हैं। हमारे आत्म-सम्मान को भारी धक्का लगा है। या तो हमारी बात सुनो नहीं तो हम वन्दे मातरम् की सौगंध खाकर कहते हैं कि तुम लोगों की अधीनता में हम लोग स्वाधीन होंगे। अवश्य होंगे। देखें किसमें शक्ति है कि इसमें रुकावट डाले?....यह कैसी प्रार्थना है और इसका स्वरूप क्या है, यह बात समझ पाना मेरी बुद्धि के बाहर की बात है। मैं केवल इतना ही जानता हूं कि उनके इस मांगने और पाने के साथ मेरा कोई संबंध नहीं है।

कुछ देकर रुककर बोले, सुधार का अर्थ मरम्मत है, परिवर्तन नहीं। भारी बोझ के कारण जो अपराध आज मनुष्य के लिए असहनीय हो उठा है उसे ही सहनीय बना देना। जो यंत्र बिगड़ रहा है मरम्मत करके उसे अच्छी तरह चालू कर देने का जो कौशल है शायद उसी का नाम शासन-सुधार है। एक दिन के लिए भी मैंने इस धोखेबाजी की इच्छा नहीं की। एक दिन के लिए भी मैंने यह नहीं कहा कि कारागार की चौड़ाई कुछ और बड़ी करके हमें कृतार्थ करो। भारती, मेरी कामना में स्वयं को छलने के लिए अवसर नहीं है। हमारी समस्या की सिद्धि के लिए दो ही मार्ग खुले हैं - एक मृत्यु और दूसरी भारत की स्वाधीनता।

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