ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
ऐसा अद्भुत आचरण भारती ने इससे पहले कभी नहीं किया था। अपूर्व को लज्जा अनुभव होने लगी। लेकिन यहां इन मामलों में आक्षेप करने का किसी के पास अवसर नहीं था।
वहां पहुंचते ही अपूर्व को एक व्यक्ति एकटक देखता रह गया। वह कुछ लिख रहा था।
अपूर्व ने गिनकर देखा - छ: महिलाएं और आठ पुरुष मिलकर एक साथ किसी विषय पर बातचीत कर रहे थे। वह सभी लोग अपरिचित हैं, केवल एक आदमी को देखते ही अपूर्व पहचान गया। वेश-भूषा में कुछ परिवर्तन अवश्य हो गया था। लेकिन उसने इसी आदमी को कुछ दिन पहले मिक्थिला स्टेशन पर बिना टिकट होने के अपराध में पुलिस के हाथ पड़ने से बचाया था और जिसने जल्द-से-जल्द रुपये वापस करने का वचन दिया था। उस आदमी ने नजरें दौड़ाकर देखा। लेकिन शराब के नशे में जिसके सामने हाथ पसारकर सहायता ग्रहण की थी शराब के पिए हुए उसकी याद तक नहीं आ सकी। लेकिन इस बात के लिए नहीं, भारती के संबंध में सोचकर उसके हृदय में पीड़ा की कसक उठी कि वह ऐसे लोगों के बीच कैसे आ फंसी।
भारती ने सामने खड़ी महिला की ओर इशारा करके कहा, 'यह हमारी अध्यक्षा हैं सुमित्रा देवी।”
कहने की आवश्यकता नहीं थी। अपूर्व ने उसे पहले ही पहचान लिया था। उम्र तीस के लगभग होगी। लेकिन जान पड़ता है जैसे कहीं की राजरानी हैं। शरीर का रंग तपे सोने के समान है। दक्षिणी ढंग से सिर के बाल ढीले बांधे हुए हैं। कलाई में सोने की दो-चार चूड़ियां हैं। गले पर सोने के हार का कुछ भाग चमक रहा है। कानों में हरे पत्थर के झुमकों पर प्रकाश पड़ने से सांप की आंखों जैसे दिखाई देते हैं। यही तो चाहिए। माथा, ठोड़ी, नाक, आंख, होंठ - कहीं भी कोई कमी नहीं है। इतना आश्यर्चजनक सौंदर्य! ब्लैकबोर्ड पर वह एक हाथ रखे खड़ी थीं। साहबी पोशाक वाले सज्जन के प्रत्युत्तर में वह बोलने लगीं - यही तो। इसी को तो नारी का कंठ स्वर कहते हैं।”
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