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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


सुमित्रा के चेहरे पर विरक्ति तथा क्लान्ति एक साथ ही फूट पड़ी। बोलीं, “देश को रसातल से बचाने का यदि कोई मार्ग है तो वही है। आपको योरोपियन सभ्यता के संबंध में यथेष्ट ज्ञान नहीं है। इसलिए इस विषय पर बहस करना समय की बर्बादी होगी। बहुत टाइम बर्बाद हो गया। हम लोगों को और भी बहुत से काम करने हैं।”

मनोहर बाबू ने यथासम्भव अपना क्रोध दबाकर कहा, “मेरे पास भी अधिक समय नहीं है? - तो नवतारा नहीं जाएगी?”

“नहीं,” नवतारा ने सिर झुकाकर कहा।

मनोहर ने सुमित्रा से कहा, “तब इसकी जिम्मेदारी आप पर ही है।'

नवतारा बोली, “मेरी जिम्मेदारी स्वयं मुझ पर ही है। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं।”

मनोहर ने वक्र दृष्टि से उसकी ओर देखकर सुमित्रा से पूछा, “पति-गृह में विवाहित जीवन से अधिक गौरव की वस्तु नारी के लिए और भी कुछ है क्या?”

“दूसरों की बात जो भी हो, लेकिन नवतारा का पति के घर रहकर जीवन बिताना कोई गौरव का जीवन नहीं है।”

इस उत्तर पर मनोहर स्वयं को न रोक सके। क्रुद्ध होकर पूछ बैठे- “लेकिन घर से बाहर रहकर जो यह व्यभिचारपूर्ण जीवन बिताएगी, उसे आप सम्भवत: गौरवपूर्ण जीवन कहेंगी।”

इतने भीषण विद्रूप से भी किसी के चेहरे पर चंचलता दिखाई नहीं दी। सुमित्रा ने शांत स्वर में कहा, “हम लोगों की समिति में संक्षेप में बातचीत करने का नियम है, यह न भूलिए।”

“और अगर मैं इस नियम को मान न सकूं तो?”

“तो हमें बाहर निकालना पड़ेगा।”

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