ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
|
1 पाठकों को प्रिय 12 पाठक हैं |
भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
धरती के फूल
कली ने रेशमी पलकों की चिलमन उठायी।
अधखुली आँखों से आस-पास देखा।
रोशनी की नन्हीं-मुन्हीं लकीरें थिरकने लगी।
औऱ अचानक...
"आप?" संगीत का हल्का-हल्का बहाव...
"हाँ मैं....। मैं.... मैं तुम्हारा अपना। मैं।"
दोनों लिपट गये।
लाखों वर्षो के आँसू वह निकले।
वह उसे लिपटाये हूए था औऱ वह उसकी गोद में लिपटी बिलख रही थी।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book