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पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


अस्तित्व के सारे स्त्रोत वह निकले थे।

कहाँ ? कब ? क्या हूआ था ?

मौत के उस अंधेरे में ये प्रकाश की किरणें कैसी?

यह जीवन के धारे कैसे?

यह धड़कने कैसी?

वह तो धरती से लिपट गई थी। लगा था मर जायेगी। जी भी कैसे पायेगी? पर आँख खुली तो उस गोद में जिसके लिए जनम-जनम से तरस गई थी।

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जब तूफान कम हुआ तो आसपास देखा।

अस्पताल का एक कमरा।

...एक पलंग ...एक बिस्तर।

सफेद दीवार सिरहाने दवाओं का चार्ट।

धीमे से हँस पडी़ औऱ उसके दामन में अपना चेहरा छुपा लिया।

"मैं तो खो गई थी, आपने मुझे कहाँ से ढूँढ लिया?"

उसने दृढ़ता से उसे अपने साथ लिपटा लिया और कहा, "हमारा मिलन तो जन्म-जन्म का है। फिर मेरे पास आतीं ! औऱ फिर मैं तुम्हें खोने भी कब देता? अपने प्यार पर मुझे बहुत विश्वास है।"

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