ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
आँखें भर आई। "मेरा बेटा।"
होठ बुदबुदाए- "मेरा बेटा।"
मंझली बहू ने एक नन्हा-मुन्ना गोश्त का लोथडा़ उसकी ओर बढा़ दिया।
"मेरा बेटा कहां है?” बेचैन आवाज से उसने कहा।
"मेरा बेटा? कहां है मेरा बेटा ?" पागल आंखें।
"यह...यह।"
“यह कौन है?"
“तुम्हारा बेटा सुधा। तुम्हारा बेटा। ”
"नहीं.....। मेरा बेटा यह नहीं है.... मेरा बेटा यह नहीं है। मेरा बेटा तो वह है जो ब्याह के पहले रोज मेरी गोद में बैठा था। मेरा बेटा तो वह है जिसने अपना सारा प्यार मुझे दिया बदले में कभी कुछ न चाहा। जब ब्याह कर मैं इस घर में लाई गई थी और वह मेरी गोद में बैठा था उसी बेटे के लिए तो आपने मुझे दुआयें दी थीं वह कहाँ है? वह मेरा बेटा कहां है? वह मेरा नन्दी कहां है? वह मेरा अपना बेटा कहां है? जो मुझे दुनिया में सबसे प्यारा है। और दुनिया मे सबसे अपना है और जो दुनियाँ में सबसे अच्छा है। मुझे मेरा वही बेटा चाहिए। वही बेटा चाहिए।"
आँसूओं की धारें
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