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पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


बाहर निकलते ही कुछ नये हाथों ने उसे संभाल लिया।

आँसू बहाते मुखडे़ नजरों से ओझल हो गये।

लम्बा घूँघट है, कुछ दिखाई भी तो नहीं देता।

अपने औऱ पराये हाथों का अहसास भी तो नहीं हो रहा है।

केवल इतना ही अनुभव हो रहा है कि कुछ अनुभव ही नहीं हो रहा है।

केवल बाबुल के गीतों के बोल औऱ कुछ सिसकियों की प्रति-ध्वनियाँ पीछा करती आ रही हैं औऱ शरीर एक अग्नि में जल रहा हैं।

लगता ही नही कि वह जीवित है। महसूस होता है वह तो गहरी नींद में चल रही है। बेहोशी की दशा में उसे बाहर ले जाया जा रहा है।

ज्यों ही बाहर निकली उसे रोक लिया गया।

आखिरी बार उस दरवाजे को देख रही है।

दरवाजे को छू कर उसे प्रणाम करना है।

चावल औऱ जो मुट्ठियों में भर-भर कर अपने पीछे फेंकना है।

ब्राह्मण मंत्र पढ़ने लगे हैं।

दरवाजे को उसने सिन्दूर का तिलक लगाया है।

और हजारों रोते हुए चेहरों से मुंह मोड़कर गली में खडी़ फूलों से लदी एक कार में जा पहुंची है।

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