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पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


अचानक यूं लगने लगा है, जैसे सचमुच ज़िन्दगी के सारे नाते टूट गये हैं और वह एक विशाल समुद्र में बही जा रही है।

डूबती-उभरती—

हाथ-पैर मारने की ताकत नहीं है।

शरीर बेजान है।

कभी सतह पर उभर आती है तो कानों में कुछ आवाजें आती हैं।

कभी नीचे ही डूब जाती है और कुछ भी महसूस नहीं होता।

कार चलती जा रही है।

अजनबी चेहरे हैं।

लम्बा घूंघट है।

बोझिल वस्त्र हैं।

तपता शरीर है।

कोई मुट्ठियाँ भर-भर कर पैसे उसके ऊपर से न्योछावर करता जा रहा है।

बार-बार छनाके होते है।

सिक्कों की खनखनाइट।

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