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पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


उस झलक के बाद तो वह उसे देख भी नहीं सकी थी। इतने सारे लोगों के सामने नजरें कैसे उठाती ....?

परन्तु नन्दी ........।

आह, इसका चेहरा किस बुरी तरह उस झलक से मिलता है।

वैसा ही चेहरा, वैसी ही आँखें, वही आभा।

वह अनजाने में ही बडी़ देर तक उस एक झलक को नन्दी के चेहरे में ढूँढती रही।

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अचानक उसने महसूस किया वह थक गई है, बहुत थक गई है।

शरीर का जोड़-जोड़ दुखने लगा है। कमर दर्द के मारे दुहरी हुई जा रही है। कितनी ही देर से इसी जगह बैठी है औऱ फिर ये इतने बोझिल कपडे़ !

हाय, नींद के मारे आँखें मुँदी जा रही हैं।

हाय भगवान ! वह कैसी उल्झन में पड़ गई है।

इतनी रात बीत गई है औऱ वह इसी तरह एक खिलौना बनी बैठी है? जरा-सा हिल-जुल नहीं सकती? कितनी मजबूर है वह? किसी से बात तक नहीं कर सकती?

उसे अपनी मजबूरी पर गुस्सा आया।

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