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पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


यह कैसे लोग हैं? इधर से उधर बार-बार आ जा रहे हैं। कितने ही विस्तर बिछ गए हैं। सारे मर्द सो गए हैं। शायद एक तरफ की नींद भी पूरी कर चुके हों।

आखिर कोई उसके सोने का भी इन्जाम क्यों नही करता? आखिर वह कब तक इसी तरह बैठी रहेगी? या कम से कम ऐसा ही है कि यह बनावट औऱ बनाव श्रंगार के वस्त्र और गहने उतार कर हल्की-फुल्की होकर अपनी दुखती कमर को आराम दे सके।

हाय, कितने दिनों से नहीं सोई ? कल सारी रात ब्याह-मण्डप में बैठी रही। उससे पहले सारा दिन रोती रही थी और अब इतनी रात गये.....।

एक आवाज चुपके से आती है "भाभी।"

आँखें खोलीं। देखा,छोटी ननन्द है। शरीर कहीं की। बहुत रहस्यपूर्ण नजरों से देख रही है।

पूछने लगी "सपने देख रही थी क्या?" और खनखमाती हँसी?.....

वह लजा गई। कली की तरह सिमट गई।

"सपने सच्च होने का समय आ गया है, है न।"

वह मन्द-मन्द हँसती ही रही।

दिल धड़क उठा।

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