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पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


अच्छा एक बात बताऊं? आज शाम को बुखार कुछ कम था। बिस्तर पर चुपचाप लेटी थी कि अचानक हमारे घर एक मेहमान आ गया। औऱ वह मेहमान जानते हो कौन है? हमारा नन्दी। हाँ स्वामी, हमारा नन्दी। मुझे लेने आ पहुँचा। पिता जी ने आदेश भेजा है मैं जल्दी आ जाऊँ। माँ जी ने कहलवाया है कि बहू के बिना घर में बडी़ तकलीफ हो रही है। मेरा फर्ज मुझे पुकार रहा है। मगर में करूँ भी तो क्या? स्वामी बताओ मैं करूँ क्या? मैं तो इस तरह हार बैठी हूँ। इस तरह अपाहिज लेटी हूँ। कैसे अपने फर्ज को पूरा करूँ? नन्दी से क्या कहूँ? किसी से भी कुछ नहीं कह सकती। भगवान मुझे शक्ति दो कि मै अपने भगवान की आज्ञा को पूरा करने में जान न्योछावर कर सकूँ।

सुधा


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मेरे स्वामीनाथ,

हाँ, आज कई दिनों के बाद इस योग्य हो सकी हूँ कि तुम्हें याद कर सकूँ।

कितना अरसा बीता है मुझे तो कुछ भी याद नहीं है। मुझे तो कुछ होश भी नहीं है। अंतिम बार जब तुम्हें पत्र लिखा था उस दिन शायद नन्दी आया था। उसी दिन मैं तेज बुखार के बावजूद भी काभी देर तक बिस्तर पर बैठी रही थी। तुम्हें पत्र भी लिखा। नन्दी से बातें भी कीं। चोरी से कुछ खा-पी भी लिया कि जल्दी से शक्ति आ जाये।

और तब उसी रात। मुझे कुछ याद नहीं। कहते हैं कि उस रात मैं मौत के मुँह में जा पडी़। इतनी पीडा़। इतनी खौफनाक बेहोशी। इतने तूफान। इतनी कशमकश। इस घर की दीवारें तक हिल गई। डाक्टरों के ताँते बँध गये औऱ मैं कई दिनों तक जीवन और मृत्यु के दोराहे पर लटकती रही।

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