ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
अच्छा, क्या तुम भी ऐसे ही न होते? मुझे इस तरह बीमार पाते तो क्या मेरी इस तरह देखभाल न करते? यही सोचती रहती हूँ।
इस नन्दी में भी तो वही खून है जो तुममें है। दोनों की सूरत इतनी मिलती-जुलती है इसलिए मुझे बहुत शान्ति मिलती है।
नन्दी को यहाँ पाकर यूं लगता है कि तुम हर समय मेरे पास हो। और तब सर गर्व से ऊँचा करके आस-पास देखती हूँ और सोचती हूँ कि मैं भी कुछ हूँ। मेरी भी कुछ हस्ती है। मेरे भी कुछ अपने लोग हैं। मैं संसार में अकेली नहीं हूँ।
हाँ, प्राण प्यारे, नन्दी की भक्ति तो जहाँ मुझे मौत के मुँह से घसीट लायी है वहाँ उसने मुझे जीवन के नये पथ पर ला खडा़ किया है।
अब मैं अच्छी होती जा रही हूँ।
तुम बिल्कुल चिन्ता न करो। तुम्हारा नन्दी मेरे पास है। मैं जल्दी अच्छी हो जाऊँगी। नन्दी ने तुम्हें मेरी बीमारी के विषय में शायद बढ़ा-चढा़कर लिखा हो। परन्तु चिन्ता न करो और मन लगा कर अपना काम करो।
सुधा
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स्वामीनाथ,
आज हम अपने घर जा रहे हैं। आर्शीवाद दीजिये।
सुधा
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