लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पिया की गली

पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

12 पाठक हैं

भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


औऱ तब घर भर की नज़रों के सामने नन्दी ने सुधा को अपनी बाहें पर उठा लिया औऱ उसके कमरे में ले आया औऱ उसके माथे पर हाथ रखा।

औऱ उसकी दशा देख कर फूट-फूट कर रोने लगा।

दरवाजें के बाहर घर की सारी औरतें खामोश खड़ी यह सब देखती रहीं।

रोते रोते ही नन्दी वहीं चारपाई के पास ज़मीन पर बैठ कर सुधा की हथेलियां मलने लगा।

किसी ने उसकी कोई मदद न की डाक्टर को टेलीफोन करने के बाद वह वहीं बैठा रोता रहा। किसी से कुछ न कहा।

सुधा की हथेलियाँ मलता रहा।

उसकी हथेलियाँ अपने कपोलों पर रगड़ता-रगड़ता पागलों की तरह कहता रहा "नहीं....नहीं तुम नहीं मर सकतीं, तुम मुझे छोड़ कर नहीं जा सकती... नहीं जा सकतीं। इन जा़लिमों ने तुम्हें मारने में कोई कसर नहीं छोडी़, परन्तु मैं तुम्हें बचाऊँगा भाभी। मैं तुम्हारे लिए अपनी जान तक लडा़ दूँगा।“

0

शाम को बादल बहुत जो़र से गरजने लगे।

पिता जी ने कहा, "तुम उस कमरे में नहीं जाओगे।“

"नहीं पिता जी। ऐसा न कीजिये। मुझे मत रोकिये। उसका कोई नहीं। इसको कोई नहीं समझ सकता। उसको सब जान सो मार डालेंगे। मत रोकिये मुझे.....मत रोकिये।“

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book