ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
|
1 पाठकों को प्रिय 12 पाठक हैं |
भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
एक बार यूँ ही आँखें खोलीं तो देखा, माँ उसके पास खडी़ गुस्से से कांप रहीं है।
"यह क्या बात है कि महारानी जी अभी तक पलंग पर बिराजमान हैं?”
अरे जाने कहाँ से आप ही आप हिम्मत आ गई। कोहनी के बल उठी। उठ कर बैठ गई। दोनों हाथ जोड़ लिए और कहा "माँ जी, प्रणाम "
“अच्छा बहू आज क्या सचमुच नाश्ता पानी की छुट्टी है?"
“नहीं माँ, अभी बनाती हूं, अभी बनाती हूँ।"
बुखार में ही वह नहाने चली गई।
आसमान पर बादल घिरे थे। तेज़ हवाये चल रही थीं। दूर कहीं वर्षा होने के कारण वातावरण में बहुत खुनकी थी।
वह जब रसोई में आई तो अचानक आँखों के सामने अँधेरा आ गया। चौखट को थाम लिया। बडी़ देर तक वहीं बैठी रही फिर अपने आप पर काबू पा आग के सामने बैठ कर काम में व्यस्त हो गई।
यह उसी दोपहर की बात है।
नन्दी कालेज से लौटा तो खाना खाने के लिये रसोई में आया और अचानक उसका दिल रो उठा।
सुधा वहीं ज़मीन पर ही बेहोश पडी़ थी।
|