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प्रेरक कहानियाँ

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :35
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9712

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मनोरंजक और प्रेरणाप्रद बोध कथाएँ

 

11. सच्चाई


चौथी कक्षा की मासिक-परीक्षा में गणित का प्रश्न-पत्र हल कर रहे थे, सभी छात्र! गोपालकृष्ण गोखले ने अन्य प्रश्न तो हल कर लिए, किन्तु एक प्रश्न पर गाड़ी अटक गई।

गोपाल के साथ वाला छात्र उसकी कठिनाई समझ गया और उसने संकेत से प्रश्न हल करवा दिया।

जब अध्यापक ने कापियों की जाँच की, तो केवल गोपाल के ही सभी उत्तर सही थे, अन्य सभी छात्रों के गलत!

अध्यापक ने गोपाल की पीठ थपथपाई, फिर बड़े स्नेह-पूर्वक उसे एक पुस्तक देते हुए बोले-  'बेटे गोपाल! यह पुस्तक तुम्हें पुरस्कार में दी जाती है। तुम इसी प्रकार मन लगाकर पढ़ा करो। ताकि सदैव ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो सको।'

यह सुनते ही प्रसन्न होने की बजाय गोपाल रोने लगा।

गुरुजी ने उसे पुचकारा-'बेटे, रोते क्यों हो? तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए।'

'गुरुजी! मुझे पुरस्कार नहीं, दण्ड दीजिए।' गोपाल ने सिसकते हुए कहा।

'किन्तु क्यों?' गुरुजी ने पूछा।

'गुरुजी! मैंने एक प्रश्न के हल करने में अपने पड़ोसी-छात्र की सहायता ली थी।' गोपाल ने कहा।

यह सुनते ही गुरुजी ने गोपाल को पुचकारते हुए अपने सीने से लगाकर कहा-'अब तक तो तुम्हारी योग्यता के लिए तुम्हें पुरस्कृत किया जा रहा था, किन्तु अब सत्य-भाषण के लिए! तुम सदैव सत्य बोलो और महान् बनो, यह मेरा आशीर्वाद है।'

सचमुच गुरुजी का आशीर्वाद फलीभूत हुआ और एक दिन गोपालकृष्ण गोखले हमारे देश के महान् नेता बने।

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