ई-पुस्तकें >> श्रीकान्त श्रीकान्तशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास
“तुम्हारे लिए कुछ भी असम्भव नहीं है लक्ष्मी। चलो, तुम भी चलो।”
“हाँ, चलो, कल सवेरे की गाड़ी से ही हम दोनों चल दें। तुम कोई चिन्ता न करो, इस जीवन में मैं तुम्हें कभी दु:खी न करूँगी।”
इतना कहकर वह एक तरह विमना-सी हो गयी। आँखें बन्द हो गयीं, साँस रुकने लगा, सहसा न जाने वह कितनी दूर चली गयी।
भयभीत होकर उसे हिलाकर पूछा, “यह क्या?”
राजलक्ष्मी आँखें खोलकर किंचित् मुस्कराई और बोली, “कहाँ, कुछ भी तो नहीं!”
आज उसकी यह हँसी भी न जाने मुझे कैसी लगी!
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