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श्रीकनकधारा स्तोत्र

आदि शंकराचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :13
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9723

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लक्ष्मी आराधना के स्तोत्र


इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्रदृष्टा
त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः॥ 9 ॥


विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिसके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल-गर्भके समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांच्छित पुष्टि प्रदान करे ।।9।।

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै॥ 10 ॥


जो सृष्टि-लीला के समय वाग्देवता (ब्रह्म-शक्ति) के रूप में स्थित होती हैं, पालन-लीला करते समय भगवान गरुड़ध्वज की सुन्दरी पत्नी लक्ष्मी (या वैष्णवी शक्ति) के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय-लीला के काल में शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखरवल्लभा पार्वती (रुद्र-शक्ति) के रूप में अवस्थित होती हैं, उन त्रिभुवन के एकमात्र गुरु भगवान नारायणकी नित्ययौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है ।।10।।

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