ई-पुस्तकें >> श्रीकनकधारा स्तोत्र श्रीकनकधारा स्तोत्रआदि शंकराचार्य
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लक्ष्मी आराधना के स्तोत्र
सम्पतकराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये॥ 13 ॥
कमल सदृश नेत्रों वाली माननीया माँ! आपके चरणों में की हुई वन्दना सम्पत्ति प्रदान करने वाली, सम्पूर्ण इन्दियों को आनन्द देने वाली, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे दुखों के हर लेने के लिये सर्वथा उद्यत है । वह सदा मुझे ही अवलम्बन करे (मुझे ही आपकी चरण वन्दना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे) ।।13।।
यत्कटाक्षसमुपासना विधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः ।
संतनोति वचनांगमानसैस्त्वां
मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥
जिनके कृपा कटाक्ष के लिये की हुई उपासना उपासक के लिये सम्पूर्ण मनोरथों और सम्पत्तियों का विस्तार करती है श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता रहूँ।।14।।
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