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श्रीकनकधारा स्तोत्र

आदि शंकराचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :13
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9723

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लक्ष्मी आराधना के स्तोत्र


सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे 

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥


भगवति हरिप्रिये! तुम कमलवन में निवास करने वाली हो, तुम्हारे हाथों में लीला-कमल सुशोभित है। तुम अत्यंत उज्जवल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झांकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि मुझपर प्रसन्न हो जाओ।।15।।

दिग्घस्तिभिः कनकुम्भमुखावसृष्ट
स्वर्वाहिनी विमलचारुजलप्लुतांगीम्

प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥


दिग्गजों द्वारा सुवर्ण-कलश के मुख से गिराये गये आकाशगंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्रीअङ्गों का अभिषेक (स्नान–कार्य) सम्पादित होता है। सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णुकी गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रातःकाल प्रणाम करता हूँ ।।16।।

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