ई-पुस्तकें >> श्रीकनकधारा स्तोत्र श्रीकनकधारा स्तोत्रआदि शंकराचार्य
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लक्ष्मी आराधना के स्तोत्र
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूरतरंगितैरपांगैः ।
अवलोकय मामकिंचनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः॥17॥
कमलनयन केशव की कमनीय कामनी कमले! मैं अकिञ्चन (दीनहीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरल–तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो ।।17।।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः॥18॥
जो लोग इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयीस्वरूपा त्रिभुवनजननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान् गुणवान और अत्यन्त सौभाग्यशाली होते हैं, तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभाव जानते रहते हैं ।।18।।
(आदि शंकराचार्य विरचित कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्ण)
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