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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728

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समकालीन कहानी संग्रह

तुमने मेरे शिक्षक बनने की प्रक्रिया की चर्चा की। यह पूर्णतया सच है कि मेरे घोर व्यवसायी घराने में कोई अध्यापक बनने की कल्पना भी नहीं कर सकता। परिवारिक परम्परा के अनुसार व्यवसाय करना, धन कमाना, धनवान होने की प्रतिष्ठा अर्जित करना मेरे लिए सरल ही था और अनुकूल भी। परन्तु मुझे लगा था कि प्रभु ने मुझे लिखने के लिए भेजा है। लेखन और अध्ययन दोनों कार्य अध्यापक के अनुकूल बैठते हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षण को मैं श्रेष्ठ कार्य मानता हूँ। सुबह-सुबह निश्चित समय पर विद्यालय में प्रवेश। छात्रों अध्यापकों का आपसी अभिवादन फिर नन्हें-मुन्हें बच्चों के साथ सामुहिक प्रार्थना दिन-भर ज्ञान-विज्ञान की चर्चा, अध्यापको द्वारा नैतिक, श्रेष्ठ नागरिक बनने पर बल, शरीर को हष्ट-पुष्ट बनाने के लिए क्रीड़ा-अभ्यास, छात्रों में निहित नाना प्रकार की प्रतिभाओं का विकास-दुनियाँ में इससे अच्छा काम क्या हो सकता है?

आज भी समाज में अध्यापक का जो स्थान हो परन्तु अन्य किसी भी व्यवसाय या नौकरी से वह अधिक ईमानदार और विश्वसनीय है। स्कूल में उपस्थित अध्यापक सच बोलने की बात सिखाता है या चुप रहता है परन्तु झूठ बोलने की प्रेरणा कभी नहीं देता।

प्रिय राधारमण शिक्षक बनना तो आसान है परन्तु शिक्षक होना मुश्किल है। समाज अध्यापक को एक विशिष्ट प्राणी मानता है और यह सच भी है क्योंकि छात्रों के लिए अध्यापक अनुकरणीय होता है। इसलिए अनेक बार अध्यापक को अपने मन के विपरीत वह करना पड़ता है जो समाज के लिए श्रेष्ठ हो।

तुम नये-नये अध्यापक बने हो। तुम्हारे समुख अनेक प्रकार के अध्यापक आएंगे परन्तु तुमको एक विशिष्ट कर्मयोगी अध्यापक बनना है ताकि दूसरे तुमसे प्रेरणा लें। अधिक से अधिक समय अपने शिष्यों के साथ रहना है। भययुक्त अनुशासन नहीं बनाना भयमुक्त शिक्षण करना है। प्रत्येक छात्र में एक श्रेष्ठ आत्मा और एक विशिष्ठ प्रतिभा है। तुम्हें उसको दिशा बोध कराना है। उसकी जिज्ञासाओं को खुशी-खुशी शांत करना है सभी शिष्यों को अपनी औलाद के समान मानना है। सच कहता हूँ तुम्हें इतनी खुशी व संतोष मिलेगा कि दुनिया का कोई भी सुख उतना आनंद नहीं दे पाएगा।

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