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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728

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समकालीन कहानी संग्रह

आज दुनिया में सब विद्वान हैं सब दूसरें को उपदेश देना चाहते हैं कोई किसी की बात सुनना ही नहीं चाहता। ये तो अबोध विद्यार्थी है जो हमारी सारी अच्छी-बुरी बातों को सुनते रहते हैं बिना किसी विरोध के स्वीकारते रहते हैं। एक और बड़ा परिवर्तन आया है। आज कल के विद्यार्थी हमें सर जी, मैडम जी कहकर सम्बोधित करते हैं। गुरू जी शब्द में जो आदर व निष्ठा थी वह इस हिन्दी -अंग्रेजी के मिले जुले शब्दों में कहा। मैने बदलाव करने का सोचा था परन्तु मुख्याध्यापक ने समझाया - राधारमण सारी दुनिया अंग्रेजी के पीछे दौड़ रही है। अच्छे परिवारों के सब बच्चे प्राइवेट स्कूलों में चले जाते हैं। सरकार भी प्राइवेट स्कूल के मुकाबलें में अपने स्कूलों में कुछ सुधार करना चाहती है। इसी लिए मेरा सुझाव है, इस परिवर्तन को रहने दो। गुरू जी मैं भी क्या बक-बक लेकर बैठ गया। ये सब पढ़कर आप मुझ पर हँसेंगे परन्तु मैं क्या करता बहुत दिनों से आपके सामने दिल खोलकर बातें करने का मन हो रहा था। आज पत्र लिखकर मन संतुष्ट हो गया। यदि आपको कष्ट न हो तो आशीर्वाद स्वरूप कुछ पंक्तियाँ मेरे लिए अवश्य लिख भेजिएगा।

आपका
राधारमण ’सावरियां‘

 

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सांकला
२ अक्टूबर २००५

प्रिय राधारमण,

 खुश रहो। तुम्हारा पत्र मिला। समझ में नहीं आया मुझे पत्र लिखने का तुम्हारा क्या प्रयोजन रहा है। वैसे तो मैं तुम्हें पहचानने में असफल रहता परन्तु गाँधी जी के भजन ने तुम्हारी स्मृति को ताजा कर दिया। तुम्हारे कण्ठ की आवाज सुनकर उन दिनों मैं सोचता था कि तुम एक अच्छे गायक बनोगे परन्तु बहुत कठिन है कि आदमी का शौक और व्यवसाय एक हो जाए। खैर वक्त ने तुम्हें अध्यापक बना दिया परन्तु प्रिय राधारमण अब केवल अध्यापक नहीं एक शिक्षक बनकर दिखाना।

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