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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''अभी जलाती हूं मां जी।'' गौरी ने कुछ थडान का अभिनय करते हुए कहा।

''तू दिन-ब-दिन आलसी होती जा रही है...अच्छा चल तू आटा गूंध दे...खाना मैं बना लूंगी।''

''खाना बन जाएगा मां जी...पहले आप यह बताइए देवी माता ने आपकी प्रार्थना सुनी कि नहीं।'' गौरी ने मां का ध्यान रणजीत की ओर मोड़ते हुए कहा।

''अरे, जब अपना बेटा ही नहीं आना चाहता तो देवी माता क्या उसे धकेल कर भेजेंगी।'' मां ने कुछ निराश होकर कहा।

''निराश मत हो मां जी...फ़ौज की नौकरी ठहरी...जब छुट्टी मिलेगी, तुरंत आ जाएंगे।'' गौरी ने एक्टिंग करते हुए कहा।

''चल हट...तू हमेशा उसका पक्ष लेती है। यह फ़ौज की नौकरी मेरी बैरन बन गई है...आ जाने दे रणजीत को। मैं उससे यह नौकरी ही छुड़वा दूंगी। अब लड़ाई समाप्त हो गई है तो उसे फ़ौज में रहने की क्या जरूरत है...बस हो चुकी बहुत देश-भक्ति...।'' कहते हुए अचानक उनकी दृष्टि आंगन में रखे रशीद के सामान पर पड़ी और चिल्लाकर बोलीं-''अरे...यह सामान किसका है?''

गौरी ने लपक कर सामान में रखी टोकरी में से मिठाई का डिब्बा निकाला और उसमें से मावे का एक लड्डू लेकर मां के मुंह में देती हुई बोली-''पहले मुंह मीठा कर लीजिए...फिर बताती हूं, कौन मेहमान आया है।''

मां यह सुनते ही खुशी से कांपने लगीं और भर्राई आवाज़ में बोलीं-''अरी...जल्दी बता...कहीं मेरा रणजीत तो नहीं आ गया।''

तभी रशीद ने पीछे से आकर मां की दोनों आंखें अपने हाथों से बंद कर दीं और शरारत से मुस्कराने लगा। मां ने अपने हाथों से उसके दोनों हाथ टटोले और असीम खुशी से बोल उठी- ''अरे...यह तो मेरे लाल के हाथ हैं...इनसे मेरे बेटे की खुशबू आ रही है।'' कहते हुए मां ने धीरे से रशीद के दोनों हाथ अपनी आंखों पर से हटा दिए और पलटकर बोलीं-

''रणजीत...मेरे लाल...आखिर तुझे मां की याद आ ही गई।'' और फिर झट दोनों हाथ रशीद की ओर फैला दिए।

रशीद 'मां' कहकर एकाएक उनसे लिपट गया और मां की आंखों से खुशी के आंसुओं की झड़ी लग गई। उनके होंठ थरथराने लगे। वह कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन रूंधे हुए गले से आवाज़ नहीं निकल रही थी। उन्हें ऐसा अनुभव हो रहा था, जैसे आज जीवन में पहली बार वह अपने बच्चे को सीने से लगा रही थीं। वह निरंतर रशीद को चूमे और भींचे जा रही थीं। उनके आंसुओं से रशीद का चेहरा भीग गया था। उसने मां का असीम प्यार नहीं देखा था। उसे प्रथम बार वास्तविक ममता की अनुभति हुई थी। थोड़ी देर के लिए वह भूल गया कि यह उसकी नहीं रणजीत की मां है।

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