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गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

आखिर मां ने उसे अलग किया और उसका भीगा चेहरा अपने आंचल से साफ़ करने लगीं। लेकिन अभी तक उनके हृदय में उठा ममता का तूफ़ान शांत नहीं हुआ था...वह अंदर-ही-अंदर कांपे जा रही थीं। फिर बड़ी मुश्किल से अपने उमड़ते हुए भावों को नियंत्रित किया और बोलीं-''अरे...यह कैसी पागल ममता है...मुझे तो ऐसा जान पड़ रहा है जैसे मैं जीवन में पहली बार तुझसे मिली हूं। कितने बरसों बाद लौट कर आया है...बोल, अब तो मां को छोड़कर कभी नहीं जाएगा?''

''हां मां...तू कहेगी तो नहीं जाऊंगा।'' रशीद ने मुश्किल से अपने भावों को दबाते हुए कहा।

मां बेटे की यह भावुकतापूर्ण भेंट देखकर गौरी का जी भर आया था और वह सिसक-सिसक कर रो रही थी। मां ने उसे सिसकते देखा तो बोली-''अरी पगली...तू क्यों रो रही है...चल जल्दी से भैया के लिए खाना तैयार कर दे। अच्छा ठहर...आज मैं खुद अपने बेटे के लिए खाना बनाऊंगी।''

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