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गोस्वामी तुलसीदास

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :53
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9734

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महाकवि तुलसीदास की पद्यात्मक जीवनी

तुलसीदास के प्राण इस अज्ञान का नाश करने को विकल हो गए किन्तु उसी क्षण वहाँ आकाश में उन्हें अपनी स्त्री के दर्शन हुए। उसी के मोह में बंधकर उनका जिज्ञासु मन नीचे उतर आता है। सारी प्रकृति ही उन्हें अपनी स्त्री के सौंदर्य में रँगी जान पड़ती है। अपने मित्रों के साथ वे लौट आते हैं। रास्ते में इसी मोह की विवेचना करते आते हैं और जैसा स्वाभाविक था वह इस मोह को ही सत्य करके मानते हैं।

इधर रत्नावली का भाई उसे लिवाने आता है और जब तुलसीदास बाजार जाते हैं, वह उनकी स्त्री को लिवा ले जाता है। घर आकर तुलसी ने देखा, वहाँ कोई भी नहीं है। बस घर से निकल पड़े और ससुराल चल दिये। उनकी श्रृंगार भावनाओं के अनुकूल रास्ते में प्रकृत्ति भी मोहक सौंदर्य में रंगी हुई जान पड़ती है।

रात्रि में एकांत हुआ, उस समय तुलसीदास ने प्रिया का एक नवीन रूप देखा। समग्र भारत की सभ्यता को पुनर्जीवन देने के लिए ही जैसे विधाता ने उसे तुलसी की स्त्री बनाया था। आवेश में उसके केश खुल गए थे, आँखों से जैसे ज्वाला निकल रही थी, अपनी ही अग्नि में जैसे उसने अपने रूप को भस्म कर दिया था। तुलसी ने उसकी अरूपता देखी और सहम गए। ऐसा सौंदर्य उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। उसके शब्द उनकी अन्तरात्मा में पैठ गए और वह चलने को तैयार हो गए। रत्नावली को उस समय बोध हुआ कि यह बिछोह सदा के लिए होगा। उसके नेत्रों में आँसू भर आए, लेकिन तुलसीदास के लिए लौटना असम्भव था। वह उसे समझा-बुझाकर चल दिये। और यह विजय भारतीय संस्कृति की विजय थी। किस प्रकार तुलसी के संघर्ष का अंत होते ही अज्ञात न जाने कहाँ-कहाँ हर्ष छा गया, उस सब उल्लास का वर्णन कविता में ही पढ़ते बनता है। संघर्ष का जैसा ओजपूर्ण चित्रण कवि ने किया है, वैसा ही उसका अंत भी हृदय में न समा सकने वाले भारत बल्कि विश्वव्यापी उल्लास में किया है।

कवि का क्षेत्र नवीन है। रहस्यवाद का कथा रूप में उसने एक नया चित्र खींचा है। मनोवैज्ञानिक तथ्यों का निरूपण उसका ध्येय है। अतः उसे अपनी भाषा बहुत कुछ स्वयं गढ़नी पड़ी है। किस सफलता से उसने छोटी-छोटी बातों से लेकर बड़े-बड़े मानसिक घात-प्रतिघातों को अपनी वाणी द्वारा सजीव कर दिया है, यह सहृदय पाठक स्वयं समझेंगे। निराला जी अपनी कविता में ओजपूर्ण के लिए प्रसिद्ध हैं : उसका यहाँ पूर्ण विकास हुआ है। रहस्यवाद को उनके पुरुषत्व ने उसके अन्तर्द्वन्द्व के साथ कथा रूप में यहाँ चित्रित किया है। भाषा के साथ छंद का ओज देखते ही बन पड़ता है। हमें पूर्ण आशा है, हिंदी संसार में इस कविता की मौलिकता और उसकी महत्ता की कद्र करेगा।

- रामविलास शर्मा

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