| ई-पुस्तकें >> गोस्वामी तुलसीदास गोस्वामी तुलसीदाससूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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महाकवि तुलसीदास की पद्यात्मक जीवनी
 
 
गोस्वामी तुलसीदास
 [1]
 
 भारत के नभ के प्रभापूर्य
 शीतलाच्छाय सांस्कृतिक सूर्य
 अस्तमित आज रे-तमस्तूर्य दिङ्मण्डल;
 उर के आसन पर शिरस्त्राण
 शासन करते हैं मुसलमान;
 है ऊर्मिल जल, निश्चलत्प्राण पर शतदल।
 
 [2]
 
 शत-शत शब्दों का सांध्य काल
 यह आकुंचित भ्रू कुटिल-भाल
 छाया अंबर पर जलद-जाल ज्यों दुस्तर;
 आया पहले पंजाब प्रान्त,
 कोशल-बिहार तदनन्त क्रांत,
 क्रमशः प्रदेश सब हुए भ्रान्त, घिर-घिरकर।
 
 [3]
 
 मोगल-दल बल के जलद-यान,
 दर्पित-पद उन्मद पठान
 बहा रहे दिग्देशज्ञान, शर-खरतर,
 छाया ऊपर घन-अन्धकार--
 टूटता वज्र यह दुर्निवार,
 नीचे प्लावन की प्रलय-धार, ध्वनि हर-हर।
 
 [4]
 
 रिपु के समक्ष जो था प्रचण्ड
 आतप ज्यों तम पर करोद्दण्ड;
 निश्चल अब वही बुँदेलखण्ड, आभा गत,
 निःशेष सुरभि, कुरबक-समान
 संलग्न वृन्त पर, चिन्त्य प्राण,
 बीता उत्सव ज्यों, चिन्ह म्लान छाया श्लथ।
 
 [5]
 
 वीरों का गढ़, वह कालिंजर,
 सिंहों के लिए आज पिंजर
 नर हैं भीतर बाहर किन्नर-गण गाते
 पीकर ज्यों प्राणों का आसव
 देखा असुरों ने दैहिक दव,
 बन्धन में फँस आत्म-बांधव दुख पाते।
 			
		  			
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