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प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9776

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग


पूर्णिमा के घर में कोई दूसरा लडक़ा या आदमी नहीं था। उनके पिता का कई साल पहले परलोकवास हो चुका था और उसकी माँ परदे में रहती थी। जब अमृत पढ़ने जाने लगता तब पूर्णिमा के घर जाकर पूछ लिया करता कि बाजार से कुछ मँगवाना तो नहीं है। उसके घर में खेती-बारी होती थी, गायें-भैंसें थीं और बाग-बगीचे भी थे। वह अपने घरवालों की नजर बचाकर फसल की चीजें सौगात के तौर पर पूर्णिमा के घर दे आता था लेकिन पूर्णिमा उसकी इन खातिरदारियों को उसकी भलमनसाहत और खाने-पीने से सन्तुष्ट होने के सिवा और क्या समझे और क्यों समझे? एक गाँव में रहने वाले चाहे किसी प्रकार का रक्त-सम्बन्ध या कोई रिश्तेदारी न रखते हों, लेकिन फिर भी गाँव के रिश्ते से भाई-बहन होते ही तो हैं। इसलिए इन खातिरदारियों में कोई खास बात न थी।

एक दिन पूर्णिमा ने उससे कहा भी, कि तुम दिन-भर मदरसे में रहते हो, मेरा जी घबराता है।

अमृत ने सीधी तरह से कह दिया- क्या करूँ, इम्तहान पास आ गया है।

“मैं सोचा करती हूँ कि जब मैं चली जाऊँगी, तब तुम्हें कैसे देखूँगी और तुम क्यों मेरे घर आओगे?“

अमृत ने घबराकर पूछा- कहाँ चली जाओगी?

पूर्णिमा लजा गई। फिर बोली- जहाँ तुम्हारी बहनें चली गयीं, जहाँ सब लड़कियाँ चली जाती हैं।

अमृत ने निराश भाव से कहा- अच्छा, यह बात?

इतना कहकर अमृत चुप हो गया। अभी तक यह बात कभी उसके ध्यान में ही नहीं आयी थी कि पूर्णिमा कहीं चली भी जाएगी। इतनी दूर तक सोचने की उसे फुरसत ही नहीं थी। प्रसन्नता तो वर्तमान में ही मस्त रहती है। यदि भविष्य की बातें सोचने लगे तो फिर प्रसन्नता ही क्यों रहे?

और अमृत जितनी जल्दी इस दुर्घटना के होने की कल्पना कर सकता था, उससे पहले ही यह दुर्घटना एक खबर के रूप में सामने आ ही गयी। पूर्णिमा के ब्याह की एक जगह बातचीत हो गयी। अच्छा दौलतमन्द खानदान था और साथ ही इज्जतदार भी। पूर्णिमा की माँ ने उसे बहुत खुशी से मंजूर भी कर लिया। गरीबी की उस हालत में उसकी नजरों में जो चीज सबसे ज्यादा प्यारी थी, वह दौलत थी। और यहाँ पूर्णिमा के लिए सब तरह से सुखी रहकर जिन्दगी बिताने के सामान मौजूद थे। मानो उसे मुँहमाँगी मुराद मिल गयी हो। इससे पहले वह मारे फिक्र के घुली जाती थी। लडक़ी के ब्याह का ध्यान आते ही उसका कलेजा धडकने लगता था। अब मानो परमात्मा ने अपने एक ही कटाक्ष से उसकी सारी चिन्ताओं और विकलताओं का अन्त कर दिया।

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