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प्रेमचन्द की कहानियाँ 17

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :281
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9778

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग


मुझे 20 रु. मिहनताने के मिले थे। दिन-भर की कमाई का आधा देते हुए कलक तो हुआ, पर दूसरा उपाय ही क्या था? चुपके से 10 रु. निकाल कर खानसामा के हवाले किये। उसने एक बोतल अँगरेजी शराब मुझे ला दी। बरफ और सोडा भी लेता आया। मैं वहीं अँधेरे में बोतल खोलकर अपनी परितप्त आत्मा को सुधा-जल से सिंचित करने लगा।

क्या जानता था कि विधना मेरे लिए कोई दूसरा ही षड्यंत्र रच रहा है, विष पिलाने की तैयारियाँ कर रहा है।

नशे की नींद का पूछना ही क्या? उस पर ह्विसकी की आधी बोतल चढ़ा गया था। दिन चढ़े तक सोता रहा। कोई आठ बजे झाड़ू लगानेवाले मेहतर ने जगाया, तो नींद खुली। शराब की बोतल और गिलास सिरहाने रखकर छतरी से छिपा दिया था। ऊपर से अपना गाउन डाल दिया था। उठते ही उठते सिरहाने निगाह गयी। बोतल और गिलास का पता न था। कलेजा धक् से हो गया। खानसामा को खोजने लगा कि पूछूँ, उसने तो नहीं उठाकर रख दिया। इस विचार से उठा और टहलता हुआ डाक-बँगले के पिछवाड़े गया, जहाँ नौकरों के लिए अलग कमरे बने हुए थे; पर वहाँ का भयंकर दृश्य देख कर आगे कदम बढ़ाने का साहस न हुआ।

साहब खानसामा का कान पकड़े हुए थे। शराब की बोतलें अलग-अलग रखी हुई थीं, साहब एक, दो, तीन करके गिनते थे और खानसामा से पूछते थे, एक बोतल और कहाँ गया?- खानसामा कहता था- हुजूर, खुदा मेरा मुँह काला करे, जो मैंने कुछ भी दगल-फसल की हो।

साहब- हम क्या झूठ बोलता है? 29 बोतल नहीं था?

खान.- हुजूर, खुदा की कसम, मुझे नहीं मालूम कितनी बोतलें थीं।

इस पर साहब ने खानसामा के कई तमाचे लगाये। फिर कहा- तुम गिने, तुम न बतायेगा, तो हम तुमको जान से मार डालेगा। हमारा कुछ नहीं हो सकता। हम हाकिम है, और हाकिम लोग हमारा दोस्त है। हम तुमको अभी-अभी मार डालेगा, नहीं तो बतला दे, एक बोतल कहाँ गया?

मेरे प्राण सूख गये। बहुत दिनों के बाद ईश्वर की याद आयी। मन-ही-मन गोवर्द्धनधारी का स्मरण करने लगा। अब लाज तुम्हारे हाथ है ! भगवान् ! तुम्हीं बचाओ तो नैया बच सकती है, नहीं तो मँझधार में डूबी जाती है ! अँग्रेज है, न जाने क्या मुसीबत ढा दे। भगवान् ! खानसामा का मुँह बंद कर दो, उसकी वाणी हर लो, तुमने बड़े-बड़े द्रोहियों और दुष्टों की रक्षा की है। अजामिल को तुम्हीं ने तारा था। मैं भी द्रोही हूँ, द्रोहियों का द्रोही हूँ। मेरा संकट हरो। अबकी जान बची, तो शराब की ओर आँख न उठाऊँगा।

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