कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 20 प्रेमचन्द की कहानियाँ 20प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग
अबु०- हर्गिज नहीं।
अबूसि०- जो उसे मुहम्मद ही के घर रहना पड़ेगा।
अबु०- हर्गिज नहीं, आप मुझे आज्ञा दीजिए कि उसे अपने घर लाऊं।
अबूसि०- हर्गिज नहीं।
अबु०- क्या यह नहीं हो सकता कि मेरे घर में रह कर वह अपने मतानुसार खुदा की बन्दगी करे?
अबूसि०- हर्गिज नहीं।
अबु०- मेरी कौम मेरे साथ इतनी भी सहानुभूति न करेगी?
अबूसि०- हर्गिज नहीं।
अबु०- तो फिर आप लोग मुझे अपने समाज से पतित कर दीजिए। मुझे पतित होना मंजूर है, आप लोग चाहें जो सजा दें, वह सब मंजूर है। पर मैं अपनी बीवी को तलाक नहीं दे सकता। मैं किसी की धार्मिक स्वाधीनता का अपहरण नहीं करना चाहता, वह भी अपनी बीवी की।
अबूसि०- कुरैश में क्या और लड़कियां नहीं हैं?
अबु०- जैनब की-सी कोई नहीं।
अबूसि०- हम ऐसी लड़कियां बता सकते हैं जो चांद को लज्जित कर दें।
अबु०- मैं सौन्दर्य का उपासक नहीं।
अबूसि०- ऐसी लड़कियां दे सकता हूं जो गृह-प्रबन्ध में निपुण हों, बातें ऐसी करें जो मुंह से फूल झरें, भोजन ऐसा बनायें कि बीमार को भी रुचि हो, और सीने-पिरोने में इतनी कुशल कि पुराने कपड़े को नया कर दें।
अबु०- मैं इन गुणों में किसी का भी उपासक नहीं। मैं प्रेम और केवल प्रेम का भक्त हूं और मुझे विश्वास है, कि जैनब का-सा प्रेम मुझे सारी दुनिया में नहीं मिल सकता।
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