कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 20 प्रेमचन्द की कहानियाँ 20प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग
अबूसि०- प्रेम होता तो तुम्हें छोड़कर दगा न करती।
अबु०- मैं नहीं चाहता कि प्रेम के लिए कोई अपने आत्मस्वातन्त्य्न का त्याग करे।
अबूसि०- इसका मतलब यह है कि तुम समाज के विरोधी बनकर रहना चाहते हो। अपनी आंखों की कसम, समाज अपने ऊपर यह अत्याचार न होने देगा, मैं समझाये जाता हूं, न मानोगे तो रोओगे।
अबूसिफियान और उनकी टोली के लोग तो धमकियां देकर उधर गये इधर अबुलआस ने लकड़ी सम्हाली और ससुराल जा पहुंचे। शाम हो गई थी। हजरत अपने मुरीदों के साथ मगरिब की नमाज पढ़ रहे थे। अबुलआस ने उन्हें सलाम किया और जब तक नमाज होती रही, गौर से देखते रहे। आदमियों की कतारों का एक साथ उठना-बैठना और सिजदे करना देखकर उनके दिल पर गहरा प्रभाव पड़ रहा था। वह अज्ञात भाव से संगत के साथ बैठते, झुकते और खड़े हो जाते थे। वहां का एक-एक परमाणु इस समय ईश्वरमय हो रहा था। एक क्षण के लिए अबुलआस भी उसी भक्ति-प्रवाह में आ गये। जब नमाज खत्म हो गई तब अबुलआस ने हजरत से कहा- मैं जैनब को विदा करने आया हूं।
हजरत ने विस्मित होकर कहा- तुम्हें मालूम नहीं कि वह खुदा और रसूल पर ईमान ला चुकी है?
अबु०- जी हां, मालूम है।
हज०- इस्लाम ऐसे सम्बन्धों का निषेध करता है।
अबु०- क्या इसका मतलब है कि जैनब ने मुझे तलाक दे दिया?
हज०- अगर यही मतलब हो तो?
अबु०- तो कुछ नहीं, जैनब को खुदा और रसूल की बन्दगी मुबारक हो। मैं एक बार उससे मिलकर घर चला जाऊंगा और फिर कभी आपको अपनी सूरत न दिखाऊंगा। लेकिन उस दशा में अगर कुरैश जाति आपसे लड़ने के लिए तैयार हो जाय तो इसका इलजाम मुझ पर न होगा। हां, अगर जैनब मेरे साथ जायगी तो कुरैश के क्रोध का भाजन मैं हूंगा। आप और आपके मुरीदों पर कोई आफत न आयेगी।
हज०- तुम दबाव में आकर जैनब को खुदा की तरफ से फेरने का तो यत्न न करोगे?
अब०- मैं किसी के धर्म में विध्न डालना लज्जाजनक समझता हूं।
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