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प्रेमचन्द की कहानियाँ 20

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :154
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9781

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग


हज०- तुम्हें लोग जैनब को तलाक देने पर तो मजबूर न करेंगे?

अबु०- मैं जैनब को तलाक देने के पहले जिन्दगी को तलाक दे दूंगा। हजरत को अबुलआस की बातों से इत्मीनान हो यगा। आस को हरम में जैनब से मिलने का अवसर मिला।

आस ने पूछा- जैनब, मैं तुम्हें साथ ले चलने आया हूं। धर्म के बदलने से कहीं तुम्हारा मन तो नहीं बदल गया?

जैनब रोती हुई पति के पैरों पर गिर पड़ी और बोली- स्वामी, धर्म बार-बार मिलता है, हृदय केवल एक बार। मैं आपकी हूं। चाहे यहां रहूं, चाहे वहां। लेकिन समाज मुझे आपकी सेवा में रहने देगा?

अबु०- यदि समाज न रहने देगा तो मैं समाज ही से निकल जाऊंगा। दुनिया में रहने के लिए बहुत स्थान है। रहा मैं, तुम खूब जानती हो कि किसी के धर्म में विघ्न डालना मेरे सिद्धान्त के प्रतिकूल है। जैनब चली तो खुदैजा ने उसे बदख्शां के लालों का एक बहुमूल्य हार विदाई में दिया।

इसलाम पर विधर्मियों के अत्याचार दिन-दिन बढ़ने लगे। अवहेलना की दशा में निकलकर उसने भय के क्षेत्र में प्रवेश किया। शत्रुओं ने उसे समूल नाश करने की आयोजना करना शुरू की। दूर-दूर के कबीलों से मदद मांगी गई। इसलाम में इतनी शक्ति न थी कि शस्त्रबल से शत्रुओं को दबा सके। हजरत मुहम्मद ने अन्त को मक्का छोड़कर मदीने की राह ली। उनके कितने ही भक्तों ने उनके साथ हिजरत की। मदीने में पहुंचकर मुसलमानों में एक नई शक्ति, एक नई स्फूर्ति का उदय हुआ। वे नि:शंक होकर धर्म का पालन करने लगे। अब पड़ोसियों से दबने और छिपने की जरूरत न थी। आत्मविश्वास बढ़ा। इधर भी विधर्मियों का सामना करने की तैयारियां होने लगीं। एक दिन अबुलआस ने आकर स्त्री से कहा- जैनब, हमारे नेताओं ने इसलाम पर जेहाद करने की घोषणा कर दी।

जैनब ने घबराकर कहा- अब तो वे लोग यहां से चले गये फिर जेहाद की क्या जरूरत?

अबु०- मक्का से चले गये, अरब से तो नहीं चले गये, उनकी ज्यादतियां बढ़ती जा रही हैं। जिहाद के सिवा और कोई उपाय नहीं। मेरा उस जिहाद में शरीक होना बहुत जरूरी है।

जैन०- अगर तुम्हारा दिल तुम्हें मजबूर कर रहा है तो शौक से जाओ लेकिन मुझे भी साथ लेते चलो।

अबु०- अपने साथ?

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