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प्रेमचन्द की कहानियाँ 23

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9784

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग


लाला- सिविल सर्जन की फीस भी बहुत होगी?

कुंअर- अजी तुम्हें फीस की पड़ी है, यहां जान आफत में है। अगर सौ दो सौ देकर गला छूट जाय तो अपने को भाग्यवान समझूं।

वाजिदअली ने फिटन तैयार कराई और खां साहब के घर पहुंचे। देखा तो वह असबाब बंधवा रहे थे। उनसे सारा किस्सा बयान किया और कहा- अभी चलिए। आपको बुलाया है।

खां- मामला बहुत टेढ़ा है। बड़ी दौड़-धूप करनी पड़ेगी। कसम खुदा की, तुम सबके सब गर्दन मार देने के लायक हो। जरा-सी देर के लिए मैं टल क्या गया कि सारा खेल ही बिगाड़ दिया।

वाजिद- खां साहब, हमसे तो उड़िए नहीं। कुंअर साहब बौखलाये हुए हैं। दो-चार सौ का वारा-न्यारा है। चलकर सिविल सर्जन को मना कर दीजिए।

खां- चलो, शायद कोई तरकीब सूझ जाये।

दोनों आदमी सिविल सर्जन की तरफ चले। वहां मालूम हुआ कि साहब कुंअर साहब के मकान पर गये हैं। फौरन फिटन घुमा दी, और कुंअर साहब की कोठी पर पहुंचे। देखा तो सर्जन साहब एनेमा लिये हुए कुंअर चाहब की चारपाई के सामने बैठे हुए हैं।

खाँ- मैं तो हुजूर के बंगले से चला आ रहा हूँ। कुंअर साहब का क्या हाल है?

डाक्टर- पेट में दर्द है। अभी पिचकारी लगाने से अच्छा हो जायेगा।

कुंअर- हुजूर, अब दर्द बिल्कुल नहीं है। मुझे कभी-कभी यह मर्ज हो जाता है और आप ही आप अच्छा हो जाता है।

डाक्टर- ओ, आप डरता है। डरने की कोई बात नहीं है। आप एक मिनट में अच्छा हो जाएगा।

कुंअर- हुजूर, मैं बिल्कुल अच्छा हूं। अब कोई शिकायत नहीं है।

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