कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
डाक्टर- डरने की कोई बात नहीं, यह सब आदमी यहां से हट जांय, हम एक मिनट में अच्छा कर देगा।
खां साहब ने डाक्टर के कान में कहा- हुजूर अपनी रात की डबल फीस और गाड़ी का किराया लेकर चले जाएं, इन रईसों के फेर में न पड़ें, यह लोग बारहों महीने इसी तरह बीमार रहते हैं। एक हफ्ते तक आकर देख लिया कीजिए।
डाक्टर साहब की समझ में यह बात आ गई। कल फिर आने का वादा करके चले गये। लोगों के सिर से बला टली। खां साहब की कारगुजारी की तारीफ होने लगी!
कुंअर- खां साहब आप बड़े वक्त पर काम आये। जिन्दगी-भर आपका एहसान मानूंगा।
खां- जनाब, दो सौ चटाने पड़े। कहता था छोटे साहब का हुक्म हैं। मैं बिला पिचकारी लगाये न जाऊंगा। अंग्रेजों का हाल तो आप जानते हैं। बात के पक्के होते हैं।
कुंअर- यह भी कह दिया न कि छोटे साहब को मेरी बीमारी की इत्तला कर दें और कह दें, वह सफर करने लायक नहीं है।
खां- हां साहब, और रुपये दिये किसलिए, क्या मेरा कोई रिश्तेदार था? मगर छोटे साहब को होगी बड़ी तकलीफ। बेचारे ने आपको बंगले के आसरे पर होटल का इन्तजाम भी न किया था। मामला बेढब हुआ।
कुंअर- तो भई, मैं क्या करता, आप ही सोचिए।
खां- यह चाल उल्टी पड़ी। जिस वक्त काटन साहब यहां आये थे, आपको उनसे मिलना चाहिए था। साफ कह देते, आज एक सख्त जरूरत से रुकना पड़ा। लेकिन खैर, मैं साहब के साथ रहूंगा, कोई न कोई इंतजाम हो ही जायगा।
कुंअर- क्या अभी आप जाने का इरादा कर ही रहे हैं! हलफ से कहता हूं, मैं आपको न जाने दूंगा, यहां न जाने कैसी पड़े, मियां वाजिद देखो, आपको घर कहला दो, बाहर न जायेंगे।
खां- आप अपने साथ मुझे भी डुबाना चाहते हैं। छोटे साहब आपसे नाराज भी हो जाएं तो क्या कर लेंगे, लेकिन मुझसे नाराज हो गये, तो खराब ही कर डालेंगे।
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