कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35 प्रेमचन्द की कहानियाँ 35प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग
पर इस मैदान में कभी-कभी ऐसे सिपाही भी आ जाते हैं, जो अवसर पर कदम बढ़ाना जानते हैं, लेकिन संकट में पीछे हटना नहीं जानते। यह रणधीर पुरुष विजय को नीति के भेंट कर देता है। वह अपनी सेना का नाम मिटा देगा, किंतु जहाँ एक बार पहुँच गया है, वहाँ से क़दम पीछे न हटाएगा। उनमें कोई विरला ही संसारक्षेत्र में विजय प्राप्त करता है, किंतु प्राय: उसकी हार विजय से भी गौरवात्मक होती है। अगर वह अनुभवशील सेनापति राष्ट्रों की नींव डालता है, तो यह आन पर जान देने वाला, यह मुँह न मोड़नेवाला सिपाही, राष्ट्र के भावों को उच्च करता है और उसके हृदय पर नैतिक गौरव को अंकित कर देता है। उसे कार्यक्षेत्र में चाहे सफलता न हो, किंतु जब किसी वाक्य या सभा में उसका नाम जबान पर आ जाता है, तो श्रोतागण एक स्वर से उसके कीर्ति-गौरव को प्रतिध्वनित कर देते हैं। सारंधा इन्हीं 'आन' पर जान देनेवालों में थी।
शहज़ादा मुहीउद्दीन चंबल के किनारे से आगरे की ओर चला तो सौभाग्य उसके सिर पर मोर्छल हिलाता था। जब वह आगरे पहुँचा तो विजयदेवी ने उसके लिए सिंहासन सजा दिया।
औरंगजेब गुणज्ञ था। उसने बादशाही सरदारों के अपराध क्षमा कर दिए, उनके राज्यपद लौटा दिए और राजा चंपतराय को उसके बहुमूल्य कृत्यों के उपलक्ष्य में बारह हजारी मंसब प्रदान किया। ओरछा से बनारस और बनारस से यमुना तक उसकी जागीर नियत की गई। बुँदेला राजा फिर राज्यसेवक बना, वह फिर सुखविलास में डूबा और रानी सारंधा फिर पराधीनता के शोक से घुलने लगी।
बली बहादुर खाँ बड़ा वाक्यचतुर मनुष्य था। उसकी मृदुलता ने शीघ्र ही उसे बादशाह आलमगीर का विश्वासपात्र बना दिया। उस पर राजा-सभा में सम्मान की दृष्टि पड़ने लगी।
खाँसाहब के मन में अपने घोड़े के हाथ से निकल जाने का बड़ा शोक था। एक दिन कुँवर छत्रसाल उसी घोड़े पर सवार होकर सैर को गया था। वह खाँसाहब के महल की तरफ़ जा निकला। बली बहादुर ऐसे ही अवसर की ताक में था। उसने तुरंत अपने सेवकों को इशारा किया। राजकुमार अकेला क्या करता! पांव-पाँव घर आया और उसने सारंधा से सब समाचार बयान किया। रानी का चेहरा तमतमा गया। बोली- ''मुझे इसका शोक नहीं कि घोड़ा हाथ से गया, शोक इसका है कि तू उसे खोकर जीता क्यों लौटा। क्या तेरे शरीर में बुँदेलों का रक्त नहीं है? घोड़ा न मिलता न सही, किंतु तुझे दिखा देना चाहिए था कि एक बुँदेला बालक से उसका घोड़ा छीन लेना हँसी नहीं है।''
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