कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 46 प्रेमचन्द की कहानियाँ 46प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतालीसवाँ अन्तिम भाग
गजेन्द्र दिल में बिगड़ रहे थे, यह चुड़ैल जेवर क्यों नही उतार देती। श्यामादुलारी ने कहा- गला घोंट दो, चाहे गोली मार दो जेवर न उतारूंगी।
पहला- इसे उठा ले चलो। यों न मानेगी, मन्दिर खाली है।
दूसरा- बस, यही मुनासिब है, क्यों रे छोकरी, हमारे साथ चलेगी?
श्यामदुलारी- तुम्हारे मुंह में कालिख लगा दूंगी।
तीसरा- न चलेगी तो इस लौंडे को ले जाकर बेच डालेंगे।
श्यामा- एक-एक के हथकड़ी लगवा दूंगी।
चौथा- क्यों इतना बिगड़ती है महारानी, जरा हमारे साथ चली क्यों नहीं चलती। क्या हम इस लौंडें से भी गये-गुजरे हैं। क्या रह जाएगा, अगर हम तुझे जबर्दस्ती उठा ले जाएंगे। यों सीधी तरह नहीं मानती हो। तुम जैसी हसीन औरत पर जुल्म करने को जी नहीं चाहता।
पांचवां- या तो सारे जेवर उतारकर दे दो या हमारे साथ चालो।
श्यामदुलारी- काका आ आएंगे तो एक-एक की खाल उधेड़ डालेंगे।
पहला- यह यों न मानेगी, इस लौंडें को उठा ले चलो। तब आप ही पैरों पड़ेगी। दो आदमियों ने एक चादर से गजेन्द्र के हाथ-पांव बांधे। गजेन्द्र मुर्दे की तरह पड़े हुए थे, सांस तक न आती थी, दिल में झुंझला रहे थे- हाय कितनी बेवफा औरत है, जेवर न देगी चाहे यह सब मुझे जान से मार डालें। अच्छा, जिन्दा बचूंगा तो देखूंगा। बात तक तो पूछं नहीं। डाकूओं ने गजेन्द्र को उठा लिया और लेकर आंगन में जा पहुंचे तो श्यामदुलारी दरवाजे पर खड़ी होकर बोली- इन्हें छोड़ दो तो मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं।
पहला- पहले ही क्यों न राजी हो गई थी। चलेगी न?
श्यामदुलारी- चलूंगी। कहती तो हूं।
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