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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809

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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

स्कन्दगुप्त- इसमें गुप्तवंशीय प्रतापी सम्राट् स्कन्दगुप्त के समय का इतिहास अंकित किया गया है। स्कन्दगुप्त के समय में भारत पर हूणों के आक्रमण बड़ी प्रबलता से हुए थे। स्कन्दगुप्त ने उनको भारत से बाहर खदेड़ने के अथक प्रयत्न किये; साथ ही उसे आन्तरिक संघर्षो का भी सामना करना पड़ा। इन सब राजनैतिक दाँव-पेचों और संघर्षो को नाटकीय रूप में अंकित करने का प्रयत्न स्तुत्य है।

ध्रुवस्वामिनी- यह नाटक गुप्त-वंश के अस्तमन समय के कथानक को लेकर लिखा गया है। इसमें पुनर्विवाह एवं नारी के व्यक्तित्व की समस्या पर प्रकाश डाला गया है। इसकी समस्त घटनाएँ और कार्य व्यापार एक ही स्थान पर घटते हैं। साहित्यिकता के साथ अभिनेय तत्वों का भी इसमें पूर्ण समावेश है। इसे एक प्रकार का समस्या-नाटक भी कह सकते हैं। इस नाटक को लिखकर प्रसाद जी ने यह सिद्ध कर दिया कि वे नवीन दृष्टिकोण के अनुसार अभिनेय नाटक भी वैसी ही सफलता के साथ लिख सकते हैं।

राज्यश्री- इस नाटक में सम्राट् हर्षवर्द्धन की बहिन राज्यश्री को मुख्य पात्र मानकर हर्षवर्द्धन के समय का चित्र अंकित किया गया है।

'स्कन्दगुप्त' और 'चन्द्रगुप्त' आदि में जो राष्ट्रीयता का स्वरूप है, वह आधुनिक भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के कितने ही सूत्रों को समेटे हुए है। फिर भी ऐतिहासिक कथाओं में सामयिक समस्याओं की सीधी अभिव्यक्ति नहीं हो सकती और न ही उनमें नवयुग की विकृतियों को चित्रित किया जा सकता है। इसके लिए प्रसाद जी ने 'कामना' और 'एक घूँट' नामक दो रूपक नाटकों की सृष्टि की।

कामना- किस प्रकार प्रकृति के उन्मुक्त वातावरण में पड़े एक भोले-भाले देश को विदेशियों के सम्पर्क के कारण विलासिता में डूब कर अपने जीवन को संघर्षों में डालना पड़ गया-यही इसका प्रतिपाद्य विषय है। यदि भारत को फूलों का देश और विदेशी युवक को अँग्रेजों का प्रतीक मान लें तो भारत की पराधीनता का इतिहास इसमें पूर्ण रूप में प्रतिबिम्बित होने लगता है।

एक घूँट- इसमें स्वच्छन्द प्रेम और विवाहित जीवन का तारतम्य दिखाया गया है। विवाहित जीवन की श्रेष्ठता सिद्ध करके इस नाटक में स्वच्छन्द प्रेम की असम्भावना को स्पष्ट सिद्ध कर दिया है।

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