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धर्म एवं दर्शन >> काम

काम

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9811

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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन


दो प्रकार से आक्रमण किया जा सकता है - एक तो छिपकर और दूसरा प्रकट रूप से, खुलकर सामने आकर। काम यहाँ पर छिपकर आक्रमण नहीं कर रहा है। वैसे तो काम में थोड़ी-सी छिपाने की वृत्ति स्वाभाविक रूप से होती ही है पर जब मनुष्य को यह प्रतीत होता है कि 'यह पाप है या बुराई है' तो उस स्थिति में वह काम को विशेष रूप से छिपाने की चेष्टा करता है। पर आज काम का दुस्साहस तो इतना बढ़ा हुआ है कि वह खुल कर, बाजा बजाता हुआ आक्रमण करने के लिये आ रहा है। गोस्वामीजी कहते हैं कि-

कंकन किकिनि स्तर धुनि सुनि।
कहत लखन सन रामु हदयँ गुनि।।
मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्हीं।
मनसा बिस्व विजय कहँ कीर्न्ही।। 1/ 229/ 1,2


भगवान् राम 'काम' के आगमन को स्वीकार करते हैं। फिर गोस्वामीजी आगे वर्णन करते हुए कहते हैं कि भगवान् राम के इतना कहते-कहते श्री सीताजी सखियों के साथ दिखायी भी दे गयीं। यद्यपि श्री सीताजी अभी श्रीराम को नहीं देख पा रही हैं, पर भगवान् राम ने सीताजी को देख लिया-

अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा।
सिय मुख ससि भए नयन चकोरा।। 1/226/3


और वे उनकी ओर इस प्रकार निहारने लगे जैसे चकोर चन्द्रमा की ओर देखता है। वे श्रीसीताजी के सौन्दर्य की मन ही मन प्रशंसा करते हुए लक्ष्मणजी से कहते हैं - ''लक्ष्मण! यही जनकनंदिनी सीता हैं जिनके लिये धनुषयज्ञ हो रहा है -

तात जनकतनया यह सोई।
धनुषजग्य जेहिं कारन होई।।
पूजन गौरि सखीं लै आई।
करत प्रकास फिरइ फुलवाई।। 1/ 230/1,2

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