धर्म एवं दर्शन >> काम कामरामकिंकर जी महाराज
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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन
ये पार्वती का पूजन करने के लिये आयी हुई हैं तथा सारी वाटिका में प्रकाश फैला रही हैं।'' प्रभु के एक-एक शब्द बड़े महत्त्व के हैं। पहली बात तो उन्होंने यही कहा कि 'इनके लिये यज्ञ हो रहा है' और दूसरी बात यह है कि 'ये अपने प्रकाश से सारी वाटिका को प्रकाशित कर रही हैं।
गोस्वामीजी भगवान् राम के द्वारा श्रीसीताजी को देखने के बाद उनके मनोभावों का वर्णन करते हुए एक पंक्ति और भी लिखते हैं, जिसमें वे श्रीसीताजी के सौन्दर्य की तुलना दीपशिखा से करते हुए कहते हैं कि -
छविगृहँ दीपसिखा जनु बरई।। 1/229/7
सीताजी मानो एक प्रज्वलित दीपशिखा की तरह हैं। संस्कृत साहित्य में ऐसी उपमा मिलती है। कालिदास ने भी इसका प्रयोग किया है। रामायण में इस 'दीपशिखा' का वर्णन तीन रूपों में किया गया है- भक्ति की दीपशिखा, माया की दीपशिखा और ज्ञान की दीपशिखा। बरसात में एक दृश्य बहुधा दिखायी देता है कि पतंगों के झुण्ड के झुण्ड, जलती हुई दीपशिखा की लौ की ओर बढ़ते हैं और उसका स्पर्श करके जलकर नष्ट हो जाते हैं। इन दीपक और पतंगों को हम किस रूप में देखें? उर्दू के शायरों तथा हिन्दी के कवियों ने पतंगे को 'प्रेमी' के रूप में प्रस्तुत किया है। कहा जाता है कि वह सच्चा प्रेमी है जो प्राणों का मोह छोड़कर, मिलन के लिये अपने आपको भस्म कर देता है। गोस्वामीजी ऐसा नहीं मानते। वे मानते हैं कि दीपशिखा का प्रेमी पतंगा नहीं है, अपितु दीपशिखा के सच्चे प्रेमी तो विज्ञ पुरुष, विद्वान्-बुद्धिमान् व्यक्ति ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि वे प्रकाश का सदुपयोग करते हैं। वे अँधेरे में दीपशिखा की सहायता से वस्तुओं को देखते हैं, अध्ययन करते हैं और कई अन्य उपयोगी कार्य सम्पन्न करते हैं। दीपक से प्रेम करने का अर्थ यह तो नहीं होता कि व्यक्ति जाकर अपने को भस्म कर दे! 'मानस' में इससे जुड़ा हुआ एक व्यंग्यात्मक प्रसंग अगंद-रावण संवाद के रूप में आता है।
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