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धर्म एवं दर्शन >> काम

काम

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9811

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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन


अंगद जब रावण की सभा में गये तो रावण ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिये अंगद से कहा कि मैंने सुना है कि तुम्हारे स्वामी तपस्वी ने शंकरजी की पूजा की है, और उस पूजन में फूल चढ़ाये हैं। तुम क्या मेरा इतिहास जानते हो? मैंने भी भगवान् शंकर की पूजा की है और तुमने सुना ही होगा कि मैंने यह पूजा तुम्हारे स्वामी की भाँति साधारण फूलों से नहीं की अपितु अपने सिर सरोज से की है-

सिर सरोज निज करन्हि उतारी।
पूजे अमित बार त्रिपुरारी।। 6/24/3


रावण अपने सिर को कमल मानता है ओर कहता है कि मैंने अनेकों बार अपने सिर रूपी कमल के पुष्प, भगवान् शंकर को अपने हाथों से अर्पित कर उनकी पूजा की है। रावण भगवान् राम से अपनी तुलना करते हुए आगे कहता है कि शंकरजी मेरे घर में पूजा स्वीकार करने के लिये स्वयं आते हैं, पर तुम्हारे तपस्वी के यहाँ तो आये नहीं, उसने तो मूर्ति बनाकर पूजा की है! अब तुम्हीं बताओ कि किसकी पूजा श्रेष्ठ है? रावण फिर कहता है कि 'मैं तो शंकरजी का इतना बड़ा भक्त-शिष्य हूँ कि मैंने उनको सम्मान देने के लिये उन्हें कैलास पर्वत सहित उठाकर अपने सिर पर धारण कर लिया था, बताओ! तुम्हारे स्वामी में क्या ऐसी क्षमता है?

रावण की बात सुनकर, अंगदजी ने हँसकर व्यंग्य करते हुए कहा कि रावण! तुम्हारी प्रशंसा के लिये मुझे दो शब्द ही उपयुक्त लग रहे हैं - एक तो 'पतंगा' और दूसरा 'गधा'। मुझे लगता है कि इन दोनों का मिला-जुला रूप ही तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ परिचय है। क्योंकि –

जरहिं पतंग मोह बस,


मूर्ख पतंगे स्वयं तो दीपशिखा में जलकर नष्ट होते ही हैं, कभी-कभी वे दीपशिखा को भी बुझा देते हैं, इसलिए ये मूर्खता के साकार रूप ही हैं।

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